बारिश रुक गयी थी । पर बादल थे । और ठंडी बयार बह रही थी । चाची ने बेसन की गरम-गरम पकौड़ियाँ बनायीं थीं । सारे के सारे चचेरे भाई-बहन गुट बना कर बाहर बरामदे में बैठे हुए थे । अनुभा जो इन सब में बड़ी थी, अभी-अभी अदरक वाली चाय बना कर ले आई थी । चाय ही नहीं, बातों और गप्पों की भी चुस्कियां सब ले रहे थे ।
इतने में प्रभात को सूझा कि क्यों न इतने अच्छे मौसम में गोल चक्कर घूमने जाया जाये ! एकमत से सभी झट तैयार हो गए । चांडाल चौकड़ी निकल पड़ी घूमने । स्कूल में पढ़ने वाले नील, सायली और पायल । कॉलेज में पढ़ने वाले अनिकेत, निखिल और अनुभा ।
गोल चक्कर से घूम कर लौटने लगे तो रास्ते में एक मूंगफली बेचने वाला बच्चा मिला । सबने एक-एक पुड़िया ली । चलते-चलते अनुभा और सायली थोड़ा आगे निकल गए । बाकी चारों एक-दूसरे की खिंचाई करते हुए ज़रा पीछे रह गए थे और अपने में मशगूल थे ।
अनुभा और सायली अपनी बातों में इतनी मगन थीं कि सामने से आते दो लड़कों पर उनका ध्यान नहीं गया । उनमें से एक लड़का अचानक सायली से टकरा गया और उसका दुपट्टा खींचने लगा । अनुभा ने जैसे ही ये हरकत देखी , वह लड़के पर झपट पड़ी और उसका कालर पकड़ कर उस पर चिल्लाने लगी , "क्या ? क्या कर रहा है ? हाँ ! क्या कर रहा है ?
बाकी चारों का अब ध्यान गया इस ओर । चारों भाग कर आये और अनुभा को उस लड़के से अलग करने की कोशिश करने लगे ।
अनिकेत और निखिल बोले, "अनुभा ! अनुभा ! तू हट ! हम देखते हैं !"
नील बोला, "क्या हुआ दीदी ?" … "क्या हुआ सायली ?"
अनुभा ने किसी की नहीं सुनी । उस लड़के के कालर पर अनुभा की पकड़ और कस गयी । उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था । उसने अपने भाइयों को परे धकेल दिया और उस लड़के को धक्का देकर पास ही पड़ी बेंच पर ले गयी । सड़क के किनारे थी ये पत्थर की बेंच ।
अनुभा की प्रतिक्रिया उस लड़के के लिए पूर्णतः अनपेक्षित थी । वह भौंचक्का रह गया था । उसकी सारी मस्ती काफ़ूर हो गयी थी । वही हाल उसके साथ वाले लड़कों का भी था । अनुभा ने धक्का दे कर उस लड़के को बेंच पर बैठा दिया और उस पर अपनी पकड़ ढीली ना करते हुए, बेंच पर उसके पास बैठ गयी ।
अनुभा के चेहरा अभी भी तमतमा रहा था पर उसने एकदम शांत और गंभीर आवाज़ में उस लड़के से कहा - "क्या नाम है तुम्हारा ?"
लड़के की आवाज़ मुश्किल से फूटी, "सिद्धार्थ । "
अनुभा, "नाम तो बड़ा अच्छा है । काम ऐसे टुच्चेपने के क्यों करता है ?"
सिद्धार्थ कुछ ना बोल पाया ।
अनुभा ने कड़क कर कहा, "मोबाइल दे अपना !"
सिद्धार्थ अब गिड़गिड़ाने लगा - "गलती हो गयी दीदी ! माफ़ कर दो ! सॉरी !"
अनुभा फिर कड़की, "फ़ोन दे अपना चुपचाप !"
सिद्धार्थ सकपका कर जेब से फ़ोन निकालने लगा । फ़ोन निकाल कर उसने अनुभा को दे दिया और फिर गिड़गिड़ाने लगा - "दीदी ! सॉरी ! सॉरी बोला ना दीदी ! पुलिस को फ़ोन मत करना प्लीज़ ! प्लीज़ !"
अनुभा - "अगर पुलिस को फ़ोन करना होता तो मैं अपने फ़ोन से भी कर सकती थी । हाथ हटा .... ! पर . . तेरे फ़ोन में तेरे घर का नंबर होगा ना !
घर … home … ये रहा ।"
सिद्धार्थ ने घबरा कर अनुभा का हाथ पकड़ लिया- "दीदी नहीं ! घर पर फ़ोन नहीं करना ! घर पर नहीं प्लीज़ !" सिद्धार्थ हाथ जोड़ कर कहने लगा - "मुझे मार लो आप लोग ! पर घर फ़ोन नहीं करना प्लीज़ !"
अनुभा - "क्यों ? घर पर फ़ोन क्यों नहीं ? ऐसा क्या किया है तुमने ? किस बात का डर ?"
सिद्धार्थ - "नहीं ! नहीं ! प्लीज़ दीदी !"
अनुभा - "तेरे घर पर माँ होगी ! बहन होगी ! क्यों ? उनको बताते हैं ना . . तू क्या कर रहा था !"
सिद्धार्थ - "नहीं ! नहीं !"
अनुभा - "ठीक है । अगली बार किसी लड़की को परेशान करने का मन करे तो पहले अपनी माँ और बहन को याद कर लेना ! समझा ! "
ऐसा कहने के साथ अनुभा ने एक ज़ोर का तमाचा रसीद किया सिद्धार्थ के गाल पर और उठ खड़ी हुई, सिद्धार्थ का कालर छोड़ कर । सिद्धार्थ ने डरते हुए अनुभा के भाइयों की तरफ देखा । फिर सायली की तरफ देख कर नज़रें झुका लीं और बोला , "सॉरी । "
अनुभा ने सायली का हाथ पकड़ा और घर की तरफ़ चलने लगी । कुछ दूर तक सब चुपचाप चलते रहे । फिर अनिकेत बोला , "बहुत हिम्मत की तूने अनुभा । पर अगर उन लड़कों के पास चाकू, छुरा होता तो ?"
अनुभा ने कहा , "हो सकता था , वो हमें चोट पहुँचाते , पर खतरा मोल लेना ज़रूरी था । आखिर इसी रास्ते से कल हम सबको स्कूल या कॉलेज जाना ही पड़ता । कैसे जाते ? ऐसे ही डर - डर कर ?" ये कह कर अनुभा ने अनिकेत की ओर देखा और चुप हो गयी ।
कुछ देर में अनुभा फिर बोली , "और अपना रास्ता सुरक्षित करने के साथ-साथ कभी-कभी हमें भूले-भटकों को भी रास्ता दिखाना पड़ता है । ज़रूरी है ।"
अनुभा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी और सभी भाई-बहन भी एक दूसरे की तरफ़ देख कर मुस्कुराने लगे । ये सहीकदम उठाने की आत्मविश्वास भरी मुस्कान थी ।