अनायास ही,
हाथ से छूट गई !
छन्न से टूट गई,
मेरी प्रिय चूड़ी !
हा कर ताकती रह गई ..
कुछ ना कर सकी !
क्या फिर से जुड़ सकेगी
चूड़ी जो टूट गई ?
क्या दिल भी
टूटते हैं यूँ ही ?
क्या स्वप्न भी
चूर-चूर होते हैं ऐसे ही ?
टूट कर जुड़ते भी हैं कभी ?
पता नहीं.
बाबा रहीम तो कहते हैं यही ..
टूटे से फिर ना जुड़े
जुड़े गाँठ पड़ जाए ..
फिर भी
कोशिश तो करते ही होंगे सभी
टूटे को जोड़ने की.
कोशिश फिर ये
क्यूँ ना करें ?
स्वप्न हो या दिल कभी
टूटे ही नहीं !
संभाल कर रखें सभी
सहेज कर रखें सदा ही
स्वप्न हो, दिल हो या चूड़ी.
जवाब देंहटाएंकोशिश फिर ये
क्यूँ ना करें ?
स्वप्न हो या दिल कभी
टूटे ही नहीं !
बहुत-बहुत सुन्दर लिखा है आपने । शुभकामनाएं ।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंसादर..
वाह बहुत सुन्दर नुपूर जी हृदयग्राही रचना
जवाब देंहटाएंसुंंदर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंसंभाल कर रखें सभी
सहेज कर रखें सदा ही
स्वप्न हो, दिल हो या चूड़ी.
जी यही करना उचित होगा
उम्दा रचना
बहुत ही सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...सार्थक... सारगर्भित रचना...।
जवाब देंहटाएंफिर भी
कोशिश तो करते ही होंगे सभी
टूटे को जोड़ने की.
वाह!!!
बहुत सार्थक और सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकोशिश करें कि कुछ टूटे ही नहीं। कोशिश तो करते हैं फिर भी टूट ही जाता है कुछ ना कुछ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति !!!