किताबें ..
झकझोरती हैं,
नींद से जगाने के लिए ।
कचोटती हैं,
ग़लतियों के लिए ।
झगड़ती हैं,
हमारे पूर्वाग्रहों से ।
चुनौती देती हैं,
अपना मुस्तकबिल
खुद गढ़ने के लिए ।
कुरेदती हैं,
दिल की दीवारों पर
जमी काई को ।
नींद से जगाने के लिए ।
कचोटती हैं,
ग़लतियों के लिए ।
झगड़ती हैं,
हमारे पूर्वाग्रहों से ।
चुनौती देती हैं,
अपना मुस्तकबिल
खुद गढ़ने के लिए ।
कुरेदती हैं,
दिल की दीवारों पर
जमी काई को ।
किताबों से कुछ नहीं छुपा ।
किताबों को ही चलता है पता ।
चुपके से टपका आंसू,
धड़कनों की खुराफ़ात,
अनकही बात ..
किताबें सब जानती हैं ।
धड़कनों की खुराफ़ात,
अनकही बात ..
किताबें सब जानती हैं ।
यकीनन किताबें सब जानती हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वां जन्म दिवस - नितिन बोस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन