सुख बरसता है
वर्षा की तरह ।
भूमि में समा जाता है,
पोर पोर नम करता
धरा को करता तृप्त!
धौंकनी में फूँकता प्राण ।
संजीवनी औषधि समान ।
दुख पसर जाता है ।
शिराओं में पैठता,
पोर पोर पिराता,
बना रहता है ..
टीस की तरह
नहीं होता सहन,
प्रसव की पीङा
समान छटपटाता है ।
पर रहने नहीं देता बंजर,
दुख करता है सृजन ।
सुख पोसता है ।
दुख जगाता है ।
दुख और सुख का
जन्म से ही नाता है ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 14 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदुःख से ही दुख की अनुभूति होती है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
सुंदर
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