सोमवार, 8 सितंबर 2025

दुख-सुख का नाता


सुख बरसता है

वर्षा की तरह ।

भूमि में समा जाता है,

पोर पोर नम करता

धरा को करता तृप्त!

धौंकनी में फूँकता प्राण ।

संजीवनी औषधि समान ।


दुख पसर जाता है ।

शिराओं में पैठता,

पोर पोर पिराता,

बना रहता है ..

टीस की तरह

नहीं होता सहन,

प्रसव की पीङा

समान छटपटाता है ।

पर रहने नहीं देता बंजर,

दुख करता है सृजन ।


सुख पोसता है ।

दुख जगाता है । 

दुख और सुख का

जन्म से ही नाता है ।


4 टिप्‍पणियां:

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