गुरुवार, 4 सितंबर 2025

भक्त और भगवान



छोटा तन का आकार
एक कर में लिए कमंडल 
वपु वेश धर छलने आए
द्वार पर वामन भगवान 
लेने राजा बलि से दान ।
राजा बलि अति विनम्र 
दान सदा देने को तत्पर,
अश्वमेध यज्ञ का यजमान
सत्ता ने कर दिया भ्रमित,
जो माँगें देने को तैयार।
गुरु ने किया सावधान पर 
भक्त का दृढ़ था संकल्प ।
तेजस्वी विप्र ने माँगा तत्क्षण 
बस तीन पग भूमि का दान ।
बलि ने सहर्ष किया स्वीकार ।
नारायण ही थे वामन भगवान!
एक पग में नापा समस्त भूलोक
दूजे पग में समेटा सकल ब्रम्हांड..
अब तीसरा पग रखूँ कहाँ राजन ?
बलि चरणों में हुआ नतमस्तक,
कहा, मेरे शीश पर करुणानिधान
अपने चरणकमल को दें विश्राम ।
जो जीता था, सब कुछ गया हार, 
शरणागत को प्रभु चरण शिरोधार्य !
राजा बलि ने गहे नारायण के चरण ।
चरण वरण भक्त के जीवन का सार ।


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