पथ पर उमङते वारकरी !
स्वर लहरी हरि कीर्तन की !
कुर्ता-धोती, सफ़ेद टोपी,
धुन में मगन मंजीरे की !
रंग-रंग की पहने नव्वारी,
शीश पर गमले में तुलसी !
मृदंग-एकतारे की जुगलबंदी,
छाई अभंग की मृदुल तारी !
यात्रा में इक्कीस दिन की,
आलिंदी से पंढरपुर की,
नाचती-गाती चली टोली !
गुहार लगाती पांडुरंग की !
पताका फहराई नाम की !
पांडुरंग श्री हरि विट्ठल की !
लेकर संतों की पालकी,
पदयात्रा पुन: गंतव्य की !
अंतर्मन निरंतर टटोलती ..
विठू-माउली को पुकारती..
कीर्तन प्रसाद वितरित करती,
ताल, लय और भाव से बँधी
झूमती चली वारी पंढरपुर की !
मंगलवार, 8 जुलाई 2025
वारी पंढरपुर की
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इस पावन यात्रा में आपने अपनी सुन्दर कविता के माध्यम से जोड़ लिया । बहुत सुंदर सलोना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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