विराट वट वृक्ष की जटाओं में
उलझे हैं कई जटिल सवाल
जिनके मिलते नहीं जवाब।
जटाधारी जोगी की छाँव मगर
देती सदा कितनों को पनाह !
सख़्त तना घुमावदार पठार
चबूतरे पर धूनी जमाए बैठा
अटल, तटस्थ, ध्यानमग्न ..
अनगिनत शाखाओं और
अपनी फैली हुई जङों से
थामे मिट्टी का कण-कण,
छूटने नहीं देता अटूट बंधन,
बहने नहीं देता बाढ़ में !
जीव-जंतु को देता आश्रय
वो देखो बसा है पूरा गाँव !
गिलहरी पुल पार कर जा रही
एक चिङिया ओढ़े कत्थई शाॅल
इधर-उधर कर रही चहलक़दमी !
उस घोंसले में है बङी चहल-पहल !
और मेरे ऊपर हरी-भरी विशाल छत
ठंडी बयार बार-बार करती दुलार
मन में बो गई वृक्षारोपण का संकल्प ।
बुधवार, 11 जून 2025
छत्रछाया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
वृक्षारोपण का संकल्प अगर मानव मन से ले ले तो पारिस्थितिकीय संतुलन में अपना अहम भूमिका निभा सकेगा।
जवाब देंहटाएंसशक्त संदेश।
सादर।
-----
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्राकृतिक दृश्य का बहुत सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंwah!!!
जवाब देंहटाएं