बुधवार, 11 जून 2025

छत्रछाया


विराट वट वृक्ष की जटाओं में 

उलझे हैं कई जटिल सवाल 

जिनके मिलते नहीं जवाब।

जटाधारी जोगी की छाँव मगर

देती सदा कितनों को पनाह !

सख़्त तना घुमावदार पठार

चबूतरे पर धूनी जमाए बैठा

अटल, तटस्थ, ध्यानमग्न ..

अनगिनत शाखाओं और 

अपनी फैली हुई जङों से 

थामे मिट्टी का कण-कण,

छूटने नहीं देता अटूट बंधन,

बहने नहीं देता बाढ़ में !

जीव-जंतु को देता आश्रय

वो देखो बसा है पूरा गाँव !

गिलहरी पुल पार कर जा रही

एक चिङिया ओढ़े कत्थई शाॅल 

इधर-उधर कर रही चहलक़दमी !

उस घोंसले में है बङी चहल-पहल !

और मेरे ऊपर हरी-भरी विशाल छत

ठंडी बयार बार-बार करती दुलार

मन में बो गई वृक्षारोपण का संकल्प ।


4 टिप्‍पणियां:

  1. वृक्षारोपण का संकल्प अगर मानव मन से ले ले तो पारिस्थितिकीय संतुलन में अपना अहम भूमिका निभा सकेगा।
    सशक्त संदेश।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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  2. प्राकृतिक दृश्य का बहुत सुंदर चित्रण

    जवाब देंहटाएं

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