शनिवार, 19 अप्रैल 2025

धरोहर


अचल रहा है जो
शताब्दियों तक,
मौन साक्षी रहा है,
परिवर्तन के बीच,
प्रतिघात में अविचल,
अडिग खङा रहा है,
सुनाने युगों का वृतांत,
साक्षात प्रमाण जो
अब तक बचा है..
वह प्राचीन स्थापत्य, 
कला और परंपरा,
संस्कृति और दर्शन,
वृक्ष और नदियाँ,
भाषा और बोलियाँ..
जो अब तक टिका है,
उसके पास अब भी
कहने और देने को
बहुत कुछ शेष है ..
हमारी धरोहर है ।
बूँद-बूँद घट में संचित
मिट्टी में अमिट छाप
जिसकी, चेतना में व्याप्त 
विचारों की अविरल धारा
सींचती रहे मानस धरा~~
अतऐव संजो कर रखनी है 
अपनी यह अकूत संपदा,
घटानी नहीं, जोङनी है ।
शाश्वत मूल्यों से गढ़े शिल्प,
हमें धारण करने हैं सहज
सभ्यता के शिलालेख ।

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शिल्प छवि साभार : श्री रंगनाथ मंदिर, वृंदावन ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर हमारी धरोहर हमारे पूर्वजों का आशीष है ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 20 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं

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