चिट्ठियाँ जो लिखी नहीं गईं,
लिखी गईं तो भेजी नहीं गईं,
भेजी गईं तो कभी पहुँची नहीं,
पहुँची तो पढ़ी न जा सकीं ..
उन चिट्ठियों के नाम..
मेरा ये ख़त है ।
जैसे ख़त लिखे जाते हैं ..
दुआ-सलाम के बाद,
कुशल-क्षेम, हाल-चाल
समाचार का आदान-प्रदान,
और फिर लिखना वह बात
जो सामने कहते ना बनी ।
उमङ-घुमङ कर बदली
एक दिन अनायास बरस गई।
शब्दों की बूँदें काग़ज़ भिगो गईं ।
जैसे बोतल में बंद संदेश
कभी रवाना ही ना हों,
या हो सकता है..
अब तक सफ़र में हों,
या फिर निर्जन समुद्र तट पर
अब तक गिनती हों लहरें ।
पर रेत पर पङते नहीं निशान ।
कलम पर रह जाती है बेशक
उंगलियों की अमिट छाप ।
किन्तु पत्र जो आज तक
न हुए कभी अभिव्यक्त,
कहने को हो गए विलीन
पर अब तक प्रतीक्षारत
लिफ़ाफ़ाबंद घर की किसी
पुरानी दराज में चुपचाप ।
शायद किसी दिन जब
खंगाले जाएं उपेक्षित खन
कोई उत्सुकतावश ही सही
खोल कर पढ़ ले चिट्ठी ।
चिट्ठियाँ जो लिखी नहीं गई,
लिखी गईं तो भेजी नहीं गईं,
भेजी गईं तो कभी पहुँची नहीं,
पहुँची तो पढ़ी न जा सकीं ..
उन चिट्ठियों के नाम
है मेरा ये ख़त..
विचारों से उपजे शब्द
जिसके लिए रचे गए,
उस तक पहुँचते हैं ज़रुर
भावनाओं का वेश धर ।
एक दिन भरी दोपहर
डाकिया आता है आवाज़ लगाता
साइकिल पर सरपट या पैदल..
बस सजग रहना मन,
जब वो खङकाए साँकल ।
इस बार अपने हाथों से लेना,
खोल कर पढ़ लेना अविलंब ।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 12 अक्बटूर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह! दिल को छूती बहुत ही सुन्दर कविता।
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