शुक्रवार, 24 मई 2024

बताशे सा चाँद



उमस में घुटते मौसम से

हैरान-परेशान, बारिश के 

बादलों की आस में जब

आसमान की ओर देखा,

तो नज़र में जा अटका

मोबाइल टावर में टंगा

बताशे-सा दूधिया चाँद !


मन में आया अरे ! यहाँ 

क्या करने जा पहुँचा चाँद !

कौन सीढ़ियाँ चढ़ कर

तारों के जाल में उलझ कर

भला फ़रमाता आराम !


मानो पहुँच गया पैग़ाम !

करवट लेकर बोला चाँद

आसमान में पवन नहीं,

भरा है प्रदूषण का धुंआ ।

दिखता नहीं एक भी तारा,

अकेला रह गया मैं बेचारा !


तारों का झूला डला देखा,

तो यहाँ आ बैठा थका-हारा।

इन तारों की मीनार का सुना 

आदमी को है बङा आसरा !

मैं भी आ पहुँचा लेने जायज़ा..


दोस्त अब नहीं रहा वो ज़माना,

जब खुले आकाश तले बैठे,

या चारपाई पर लेटा गुनगुनाते,

लोग एकटक देखा करते थे चाँद !

रात को लगती थी बातों की चौपाल !

अब कोई भी साथ नहीं बैठता..

टूट गया वह बिन रिश्ते का नाता !


फिर भी आस का दामन नहीं छूटता !

ऊब कर शायद कोई बच्चा झाँकेगा

बाहर और मुझे देख कर सहसा

खुश होकर उछलता तालियाँ बजाता

नाच-नाच कर सबको बताएगा,

वो देखो मिल गया मेरा चंदा मामा !


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 26 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. बहुत रोचक 👌🏻

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  3. बहुत खूब। जब तक सांस है तब तक आस है।

    शुभ इतवार 🌹

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  4. बहुत सुंदर भाव, चंदा मामा अब कहानियों में ही रह गये हैं

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