उमस में घुटते मौसम से
हैरान-परेशान, बारिश के
बादलों की आस में जब
आसमान की ओर देखा,
तो नज़र में जा अटका
मोबाइल टावर में टंगा
बताशे-सा दूधिया चाँद !
मन में आया अरे ! यहाँ
क्या करने जा पहुँचा चाँद !
कौन सीढ़ियाँ चढ़ कर
तारों के जाल में उलझ कर
भला फ़रमाता आराम !
मानो पहुँच गया पैग़ाम !
करवट लेकर बोला चाँद
आसमान में पवन नहीं,
भरा है प्रदूषण का धुंआ ।
दिखता नहीं एक भी तारा,
अकेला रह गया मैं बेचारा !
तारों का झूला डला देखा,
तो यहाँ आ बैठा थका-हारा।
इन तारों की मीनार का सुना
आदमी को है बङा आसरा !
मैं भी आ पहुँचा लेने जायज़ा..
दोस्त अब नहीं रहा वो ज़माना,
जब खुले आकाश तले बैठे,
या चारपाई पर लेटा गुनगुनाते,
लोग एकटक देखा करते थे चाँद !
रात को लगती थी बातों की चौपाल !
अब कोई भी साथ नहीं बैठता..
टूट गया वह बिन रिश्ते का नाता !
फिर भी आस का दामन नहीं छूटता !
ऊब कर शायद कोई बच्चा झाँकेगा
बाहर और मुझे देख कर सहसा
खुश होकर उछलता तालियाँ बजाता
नाच-नाच कर सबको बताएगा,
वो देखो मिल गया मेरा चंदा मामा !
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 26 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक 👌🏻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। जब तक सांस है तब तक आस है।
जवाब देंहटाएंशुभ इतवार 🌹
बहुत सुंदर भाव, चंदा मामा अब कहानियों में ही रह गये हैं
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