बुधवार, 3 जनवरी 2024

हरिचंदन वंदन


प्रार्थना के फूल थे वो,

जो आज सुबह थे खिले ।

हर फूल एक मन्नत हो,

तो कितनी खुश्बू होगी ।

फूल भी हरसिंगार हो !

तो कैसे कोई खुश न हो !

फूल वंदना के स्वर हों ।

स्तुति के मुखर छंद हों ।

इष्ट के चरणों में हरिचंदन, 

केसर तिलक धारे अक्षत ।


4 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद, ओंकार जी. इन फूलों के खिलने की अनुभूति ही इतनी सुन्दर है. शब्दों से पूरा नहीं पड़ता.

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