रविवार, 30 अक्टूबर 2022

छोटे-छोटे दिये

कुम्हार के 
चाक पर
मिट्टी से गढ़े
छोटे-छोटे दिये
कुटिया के
आले में 
ध्यानमग्न रहते
अंधेरा कम करते
साधनारत रहते ।
यही छोटे-छोटे 
मिट्टी के दिये 
दीपावली पर
जब एक साथ 
बाले जाते,
अंतरिक्ष से भी
नज़र आते,
जुगनुओं जैसे
टिमटिमाते,
विश्व भर को 
स्मरण कराते,
छोटे होकर भी 
साधे जा सकते
काम बङे-बङे ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(३१-१०-२०२२ ) को 'मुझे नहीं बनना आदमी'(चर्चा अंक-४५९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. क्या बात है,बहोत खूब

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  3. बहुत ही सुंदर कविता है ।

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  4. वाह छोटे होकर भी साधे जाते हैं काम बड़े
    गहरी बात कह दी आपने
    बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना

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  5. हर बड़े काम की शुरुवात छोटे-छोटे कदमों से ही होती है
    बहुत सुन्दर

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  6. सुंदर भावनाओं से गुथी हुई रचना मुग्ध करती है अभिनंदन ।

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