सोमवार, 26 सितंबर 2022

भीगना ज़रूरी है


भीगना ज़रूरी है ।
मूसलाधार बारिश में ।
रिमझिम बरसती 
बूँदों की आङ में 
रो लेना भी ज़रूरी है ।
धुल जाते हैं 
ह्रदय में उलझे द्वन्द, 
छल और प्रपंच 
जिनकी मार 
दिखाई नहीं देती ।

भीगना ज़रूरी है ।
भावनाओं की बौछार में ।
अपनों के दुलार में ।

भीगना ज़रूरी है ।
थुल जाते हैं आँगन चौबारे ।
सोच के धूल भरे गलियारे ।

भीगना ज़रूरी है ।
घर से बाहर निकल आना
बिना छाते-बरसाती के, 
मुक्त होना भीगने के डर से ।

अपने आप को बहने देना 
वर्षा के जल में,
और लबालब भर देना
रीते कोने बरसाती गढ्ढे ।

भीगना ज़रूरी है ।
यह जानने के लिए कि
कौन कितने पानी में है,
और किस-किसको
आता है तैरना ।

भीगना ज़रूरी है ।
आनंद और उल्लास में ।
प्रकृति के हास में ।
जिससे नम हो मन की मिट्टी 
जिसमें खिलें फूल ही फूल ।

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चित्र सौजन्य : श्री अनमोल माथुर

9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रचना । भीगना और रोना दोनों ही ज़रूरी ।।

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    1. संगीता जी, धन्यवाद ।
      आंसू न होते तो कैसे भीगता मन ?

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  2. बहुत सुंदर।

    भीगना ज़रूरी है ।
    भावनाओं की बौछार में ।
    अपनों के दुलार में... सच कहा आपने।
    सादर

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    उत्तर
    1. आभार अनीता जी ।
      विसंगतियों से शुष्क हुआ अंतर
      भीगता नहीं तो हो जाता बंजर

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  3. आदरणीय शास्त्री जी, चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार । नमस्ते ।

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  4. 'भीगना ज़रूरी है ।
    यह जानने के लिए कि
    कौन कितने पानी में है,
    और किस-किसको
    आता है तैरना।'... बहुत सुन्दर

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  5. सच भीगने से तन-मन के भाव तिरोहित होने लगते हैं

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