शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

अपना हाथ जगन्नाथ


रात को जब सोने लगो
दिन भर के सपनों को 
कंधों से उतार कर
ताक पर मत धर देना ।

सपनों को समेट कर
हौले से धूल झाड़ कर
अच्छी तरह तहा कर
हथेली की रेखाओं के बीच
सहेज कर रख देना ।

सुबह जब उठो
बंधी मुट्ठी जब खोलो
सबसे पहले ध्यान करो ..
तुम्हारी हथेली में ही है
लक्ष्मी सरस्वती और गोविंद का वास ।
अपने प्रयत्न से
पानी है तुम्हें
समृद्धि और विद्या ।
प्रयास करो, स्मरण रहे
तुम्हारे गोविंद हैं आधार ।

स्वप्नों की परतें खोलो
परत दर परत समझो
स्वप्न का शुभ संकेत ।

अंतर्मन तब तक मथो
जब तक सार ना पा जाओ ।

फिर उठो और जतन करो ।
एकनिष्ठ कर्म ही जीवन का सार
और भक्त के गोविंद हैं आधार ।

सत्यनिष्ठ के गोविंद हैं आधार
स्वयं सिद्ध करो काज
स्वप्न करो साकार

गोविन्द हैं आधार
और अपना हाथ जगन्नाथ

12 टिप्‍पणियां:

  1. कर्म हमारे हाथ में है और फल जगन्नाथ के हाथ में ।
    गीता का सार लिए सुंदर रचना ।

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    1. निज करि क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ ।
      पाँसे अपने हाथ में, दाँव न अपने हाथ ।।

      इस बात को तो रहीमदास जी ने इतनी सुंदरता से कहा है । हमेशा से यह कहावत "अपना हाथ जगन्नाथ " अपने आप में पूर्ण कविता ..जीवन का सार ,व्यवहार ...चमत्कृत करती थी । आज रथयात्रा के अवसर पर वही बात स्मरण हो आई ।

      आपका अनन्य आभार अपने अमूल्य विचार भी साझा करने के लिए । धन्यवाद ।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-7-22) को "प्रेम और तर्क"( चर्चा अंक 4479) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  3. प्रेम और तर्क । विषय बहुत दिलचस्प और विरोधाभासी है । चर्चा में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. अपना हाथ जगन्नाथ...सच मे कर्म किए बिना फल की प्राप्ति नहीं होती। बहुत सुंदर रचना, नूपुर दी।

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  5. सार्थक एवं प्रेरक रचना !! बहुत सुंदर !!

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