रात को जब सोने लगो
दिन भर के सपनों को
कंधों से उतार कर
ताक पर मत धर देना ।
सपनों को समेट कर
हौले से धूल झाड़ कर
अच्छी तरह तहा कर
हथेली की रेखाओं के बीच
सहेज कर रख देना ।
सुबह जब उठो
बंधी मुट्ठी जब खोलो
सबसे पहले ध्यान करो ..
तुम्हारी हथेली में ही है
लक्ष्मी सरस्वती और गोविंद का वास ।
अपने प्रयत्न से
पानी है तुम्हें
समृद्धि और विद्या ।
प्रयास करो, स्मरण रहे
तुम्हारे गोविंद हैं आधार ।
स्वप्नों की परतें खोलो
परत दर परत समझो
स्वप्न का शुभ संकेत ।
अंतर्मन तब तक मथो
जब तक सार ना पा जाओ ।
फिर उठो और जतन करो ।
एकनिष्ठ कर्म ही जीवन का सार
और भक्त के गोविंद हैं आधार ।
सत्यनिष्ठ के गोविंद हैं आधार
स्वयं सिद्ध करो काज
स्वप्न करो साकार
गोविन्द हैं आधार
और अपना हाथ जगन्नाथ
कर्म हमारे हाथ में है और फल जगन्नाथ के हाथ में ।
जवाब देंहटाएंगीता का सार लिए सुंदर रचना ।
निज करि क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ ।
हटाएंपाँसे अपने हाथ में, दाँव न अपने हाथ ।।
इस बात को तो रहीमदास जी ने इतनी सुंदरता से कहा है । हमेशा से यह कहावत "अपना हाथ जगन्नाथ " अपने आप में पूर्ण कविता ..जीवन का सार ,व्यवहार ...चमत्कृत करती थी । आज रथयात्रा के अवसर पर वही बात स्मरण हो आई ।
आपका अनन्य आभार अपने अमूल्य विचार भी साझा करने के लिए । धन्यवाद ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-7-22) को "प्रेम और तर्क"( चर्चा अंक 4479) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
प्रेम और तर्क । विषय बहुत दिलचस्प और विरोधाभासी है । चर्चा में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअपना हाथ जगन्नाथ...सच मे कर्म किए बिना फल की प्राप्ति नहीं होती। बहुत सुंदर रचना, नूपुर दी।
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं प्रेरक रचना !! बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
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