शनिवार, 19 मार्च 2022

रंगरेज़ कोई


रंगरेज़ कोई छुप कर आता है रोज़ ।
सूरज उगते ही बिखेर देता चहुँ ओर
सोने - सा सुनहरा रंग आसमान पर ।
और ऐसे ही रंगता जाता सारा संसार ।

खिलते कमलों को रंग देता गुलाबी, 
झरते हरसिंगार के धवल भाल पर,
केसरिया तिलक लगाता उठ भोर ही ।

वृक्षों को रंग देता हरा,सांवला भी कभी ।
फूल-पत्ती,पंछी, सतरंगी, मत पूछो जी !
चित्र में रूपहले रंग भर देती ज्यों मुन्नी !

तोता हरियल, गौरैया भूरी-सी, मोरपंखी !
मैना काली, अनगिनत रंगों की फुलवारी ।
रंगरेज़ की अदृश्य कूची मानो जादूई छङी । 
ज़रा छूते ही बहने लगती रंगों की नदी - सी !

रंगों मे रंग घोल - घोल कर ही
रंगरेज़ लगा देता रंगों की झङी !
रंगों का मेला, रंगों भरी बारादरी 
पचरंगी घाघरा, सतरंगी चूनरी !

रंगों की दुनिया में कोई कमी नहीं ।
बस चाह हो,हर रंग में,रंग ढ़ूँढ़ने की ।

फीकी न पङे नज़र रंग देखने की ।
रंगरेज़ हर रोज़ लगाता रहता फेरी ।
बेरंग न रह जाए किसी की ज़िन्दगी ।






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