कच्ची उम्र के बच्चे
अनुभव के कच्चे
छोटे-छोटे हादसे
क्यों सह नहीं पाते ?
क्यों उनके भीतर
जवान होता बच्चा
इतना सहम गया
कि आत्मघात करना पड़ा ??
उम्मीद बर ना आये
तो जान पर बन आये ?
ऐसा क्या खो बैठे ?
जिसकी भरपाई ना हो पाए ?
उनके भीतर कहीं
गहरी खाई थी क्या ?
जो पाँव फिसले
तो संभल भी ना पाए ?
क्या अपने चूक गए
इनके भीतर उठे
भूचाल के झटके
वक़्त रहते समझने में ?
माँ-बाप ने ला-ला के
खिलौने जैसे सपने दिए
पर क्या वो देना भूल गए
सुरक्षा कवच संस्कारों के ?
फिर किसी बच्चे ने अपने
प्राण तिरोहित कर दिए
यार-दोस्त देखते रह गए
माँ-बाप स्तब्ध रह गए
दुनिया ने सिखाया कैसे
सब कुछ हासिल करना
पर किसी ने ना सिखाया
ना मिले तो आगे बढ़ें कैसे ?
खाई में गिर के वो बचेगा कैसे ?
गोविंद आपने थामा था जैसे
भक्त प्रह्लाद को अपने हाथों में
अपना लेना उसे भी अंक में भर के ।
उनके भीतर कहीं
जवाब देंहटाएंगहरी खाई थी क्या ?
जो पाँव फिसले
तो संभल भी ना पाए ?---बहुत गहरी रचना है।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंयह आश्रय बना रहे, सुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंएक उद्बोधन है अभिभावकों और किशोर अनसुलझे मनों के लिए।
साधुवाद।
उनके भीतर कहीं
जवाब देंहटाएंगहरी खाई थी क्या ?
जो पाँव फिसले
तो संभल भी ना पाए ?
क्या अपने चूक गए
इनके भीतर उठे
भूचाल के झटके
वक़्त रहते समझने में ?
अंदर तक हिला दिया इन पंक्तियों ने।
बेहद हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप ने ला-ला के
जवाब देंहटाएंखिलौने जैसे सपने दिए
पर क्या वो देना भूल गए
सुरक्षा कवच संस्कारों के ?
बस खिलौने से सपने टूटते ही टूट जाते हैं संस्कारों के सुरक्षा कवच की कमी है शायद...
बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 05 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअनंत आभार । नमस्ते ।
हटाएंओह ,ईश्वर सबकी रक्षा करें |
जवाब देंहटाएं