मंगलवार, 29 सितंबर 2020

एक रुपहला फूल

कोई कोई दिन 
होता है ऐसा ..
स्वाद उतरा हुआ सा
फीका ..मन परास्त 
हार मान लेता,
जब काम सधते नहीं 
किसी तरह भी ।

तब ही अकस्मात 
नज़र पड़ी बाहर
रखे गमले पर ।

जिस पौधे की 
सेवा बहुत की थी,
फिर छोङ दी थी
सारी उम्मीद ।

उसी पौधे पर
नाउम्मीदी को 
सरासर 
मात दे कर,
खिला था 
एक रुपहला फूल ।

28 टिप्‍पणियां:

  1. सबै दिन एक से ना होय!

    रूपहली चांदनी सदा फैली रहे।

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    1. धन्यवाद,अनमोल सा ।
      सबै दिन एक से ना जात ।
      समय का चक्र ऊपर नीचे घूमता ही रहता है ।

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  2. सबै दिन एक से ना होय!

    रूपहली चांदनी सदा फैली रहे। और जब अमावस हो तो दीप टिम - टिमाएं!

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    1. अभाव और दुख सिखाता भी है ।
      धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय
      माली सींचे सौ घणा ऋतु आए फल होय

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-09-2020) को   "गुलो-बुलबुल का हसीं बाग  उजड़ता क्यूं है"  (चर्चा अंक-3840)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  4. नाउम्मीदी के बादल छँट ही जाते हैं एक दिन...।
    सकारात्मकता से ओतप्रोत सुन्दर सृजन।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 01 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. यह सिखाता है कभी भी नाउम्मीदी नहीं रखनी चाहिए
    सुन्दर लेखन

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    1. शुक्रिया,विभा जी ।
      हर अंकुर उम्मीद उम्मीद जगाता है ।

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  7. निराश होने के बाद,प्रयत्न की सार्थकता और परिणाम में सफलता की प्राप्ति कितना प्रसन्नत देनेवाली होती है.

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    1. जी, प्रतिभा जी ।
      सोने पर सुहागा ।
      "हर ज़र्रा चमकता है अनवारे-इलाही से,
      हर साँस ये कहती है हम हैं तो खुदा भी है ।"

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  8. बहुत सुंदर रचना


    स्वरांजलि satishrohatgipoetry

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    1. नमस्ते पर आपका स्वागत है रोहतगी जी.
      सराहना के लिए बहुत धन्यवाद.

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  9. आलोक सिन्हा जी, बहुत-बहुत शुक्रिया.

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