अपनी एक भाषा,
जिसे हर कोई
समझ नहीं पाता ।
पहले कुछ भी
सुनाई नहीं देता ।
होती है
घबराहट सी ।
क्योंकि रिक्तता
बहुत ज़्यादा
शोर मचाती है ।
बहुत कुछ शोर में
छुपा देती है ।
फिर एक बोझ-सा
उतर जाता है ।
बोझिल तनाव
शिथिल पड़ जाता है ।
उसके बाद बहुत कुछ
सुनाई देता है ।
जो हमेशा से था,
पर ढका हुआ था ।
अपने ही हृदय का
मद्धम स्पंदन ।
कभी सुनने का
आग्रह कहाँ था ..
पत्तों की सरसराहट
लयबद्ध हिलना,
अभिवादन करना ।
धूप की दिनचर्या ।
छत पर चढ़ना और
सीढ़ी से उतरना।
चंचल गिलहरी का
दौड़ना कुतरना ।
पक्षियों का सुरीला
अंतरंग वार्तालाप ।
समय की पदचाप ।
सुकून भरा घर अपना
जिसने हमेशा जीवन का
हर व्यतिक्रम झेला ।
करीने से सजा हुआ ।
एक-एक बिसरी बात
स्मरण कराता हुआ ।
कोने में लाचार पड़ा
सामान कसरत का ।
रंगों का पुराना डिब्बा
अंबार किताबों का ।
बाबूजी का बाजा ।
इन सबका उलाहना
सुनाई ही कब दिया ?
जगत के कोलाहल में
निज स्वर खो गया ।
जब बाहर का शोर थमा
अंतरतम से संवाद हुआ ।
मानो मेले में बिछड़ा हुआ
कोई पुराना मीत मिला ।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, अनाम पाठक.
हटाएंक्या बात नूपुर! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया !
हटाएंपढ़ती रहना !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!"
(चर्चा अंक 3660) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
नेह का आह्वान फिर-फिर नित-नित होता रहे.
हटाएंशुक्रिया, मीनाजी.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसस्नेह हार्दिक आभार, अनाम पाठक.
हटाएंनमस्ते पर स्वागत है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंश्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जय सियाराम,शास्त्रीजी.
हटाएंप्रणाम.अनंत आभार.
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद, श्वेता जी. नमस्ते.
हटाएंवाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंराय साहब, नमस्ते पर आपका स्वागत है.
हटाएंसराहना के लिए हार्दिक आभार.
जब बाहर का शोर थमा,अंतरतम से संवाद हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
नमस्ते और धन्यवाद, मीनाजी.
हटाएंआपने इस बात पर गौर किया.
वाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया,जोशीजी.नमस्ते.
हटाएंवाह!!अद्भुत👌👌👌
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार,शुभाजी. पढ़ती रहिएगा.
हटाएंजब बाहर का शोर थमा
जवाब देंहटाएंअंतरतम से संवाद हुआ ।
मानो मेले में बिछड़ा हुआ
कोई पुराना मीत मिला
अति सुंदर ,सादर नमन आपको
शर्मिंदा ना कीजिए,कामिनीजी.
हटाएंसादर नमन इस समय को, जो बहुत कुछ बदल कर जाएगा.
सहृदय सराहना के लिए अनंत आभार.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद, ओंकारजी.नमस्ते.
हटाएंलाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंहर मन के निकट।
सुंदर।
"मन से मन को राह होती है,
हटाएंसब कहते हैं" ।
आभार आदरणीया सखी ।
"मन से मन को राह होती है, सब कहते हैं" ।
हटाएंधन्यवाद,सखी ।
नि:शब्द रह कर मन को पढ़ना ज्यादा आसान होता है ...पक्षियों का सुरीला
जवाब देंहटाएंअंतरंग वार्तालाप ।
समय की पदचाप ।
नि:शब्द की भाषा को क्या खूब ही प्रगट किया नूपुरम जी
अलकनंदा जी, इतने मन से पढ़ने के लिए हार्दिक आभार ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजब बाहर का शोर थमा,
जवाब देंहटाएंअंतरतम से संवाद हुआ।
वाह!!!
क्या बात
बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन।
सुधा सखी जी, प्रोत्साहित करने के लिए सविनय, अनंत आभार ।
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