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बुधवार, 1 अप्रैल 2020

निःशब्द


निःशब्द की होती है 
अपनी एक भाषा,
जिसे हर कोई 
समझ नहीं पाता ।

पहले कुछ भी 
सुनाई नहीं देता ।
होती है 
घबराहट सी ।
क्योंकि रिक्तता
बहुत ज़्यादा 
शोर मचाती है ।
बहुत कुछ शोर में
छुपा देती है ।

फिर एक बोझ-सा
उतर जाता है ।
बोझिल तनाव
शिथिल पड़ जाता है ।

उसके बाद बहुत कुछ
सुनाई देता है ।
जो हमेशा से था,
पर ढका हुआ था ।

अपने ही हृदय का
मद्धम स्पंदन ।
कभी सुनने का
आग्रह कहाँ था ..

पत्तों की सरसराहट
लयबद्ध हिलना,
अभिवादन करना ।
धूप की दिनचर्या ।
छत पर चढ़ना और
सीढ़ी से उतरना।
चंचल गिलहरी का
दौड़ना कुतरना ।
पक्षियों का सुरीला
अंतरंग वार्तालाप ।
समय की पदचाप ।

सुकून भरा घर अपना 
जिसने हमेशा जीवन का
हर व्यतिक्रम झेला ।
करीने से सजा हुआ ।
एक-एक बिसरी बात
स्मरण कराता हुआ ।

कोने में लाचार पड़ा
सामान कसरत का ।
रंगों का पुराना डिब्बा
अंबार किताबों का ।
बाबूजी का बाजा ।

इन सबका उलाहना
सुनाई ही कब दिया ?
जगत के कोलाहल में
निज स्वर खो गया ।

जब बाहर का शोर थमा 
अंतरतम से संवाद हुआ ।
मानो मेले में बिछड़ा हुआ
कोई पुराना मीत मिला ।

33 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात नूपुर! बहुत खूब!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!"
    (चर्चा अंक 3660)
    पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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    उत्तर
    1. नेह का आह्वान फिर-फिर नित-नित होता रहे.
      शुक्रिया, मीनाजी.

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सस्नेह हार्दिक आभार, अनाम पाठक.
      नमस्ते पर स्वागत है.

      हटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्तर
    1. राय साहब, नमस्ते पर आपका स्वागत है.
      सराहना के लिए हार्दिक आभार.

      हटाएं
  8. जब बाहर का शोर थमा,अंतरतम से संवाद हुआ।
    बहुत सुंदर रचना।

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    उत्तर
    1. नमस्ते और धन्यवाद, मीनाजी.
      आपने इस बात पर गौर किया.

      हटाएं
  9. जब बाहर का शोर थमा
    अंतरतम से संवाद हुआ ।
    मानो मेले में बिछड़ा हुआ
    कोई पुराना मीत मिला

    अति सुंदर ,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शर्मिंदा ना कीजिए,कामिनीजी.
      सादर नमन इस समय को, जो बहुत कुछ बदल कर जाएगा.
      सहृदय सराहना के लिए अनंत आभार.

      हटाएं
  10. लाजवाब सृजन ।
    हर मन के निकट।
    सुंदर।

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    उत्तर
    1. "मन से मन को राह होती है,
      सब कहते हैं" ।
      आभार आदरणीया सखी ।

      हटाएं
    2. "मन से मन को राह होती है, सब कहते हैं" ।
      धन्यवाद,सखी ।

      हटाएं
  11. न‍ि:शब्द रह कर मन को पढ़ना ज्यादा आसान होता है ...पक्षियों का सुरीला
    अंतरंग वार्तालाप ।
    समय की पदचाप ।
    न‍ि:शब्द की भाषा को क्या खूब ही प्रगट क‍िया नूपुरम जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अलकनंदा जी, इतने मन से पढ़ने के लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  12. जब बाहर का शोर थमा,
    अंतरतम से संवाद हुआ।
    वाह!!!
    क्या बात
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा सखी जी, प्रोत्साहित करने के लिए सविनय, अनंत आभार ।

      हटाएं

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