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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

उपहार

उपहार होते हैं
कई मिज़ाज के ।

एक होते हैं व्यवहार 
निभाने के लिए ।
दूजे होते हैं संवाद 
बढ़ाने के लिए ।

वो कहने के लिए
जो कहते ना बने ।
गिनती के शब्दों में
हरगिज़ बांधे न बंधे ।

कुछ होते हैं
प्यार दुलार में पगे ।
मीठे बताशों से ।

कुछ होते हैं
बात समझाते हुए ।
धैर्य धन से सधे ।

कुछ होते हैं
नटखट मासूम से ।
जग भर से अनोखे ।

और कुछ होते हैं
आशीर्वाद सरीखे ।
मर्म को झंकृत करते ।

ये उपहार होते हैं
खेतों में बोए 
बीज जैसे,
जिनसे उपजती है
लहलहाती फसल ।

औपचारिकता से परे ..
अचानक सूझी
कविता जैसे !
हृदय में टिमटिमाती
आस जैसे ।
बड़े सिर पर रख दें
हाथ जैसे ।


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रिश्ता तो कोई ऐसा ख़ास नहीं. पर उन्हें जय मौसाजी के संबोधन से जाना है. वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित कलाकार ,आर्ट स्कूल के प्रधानाध्यापक, लेखक और अपने सिद्धांतों पर अडिग  व्यक्तित्व के रूप में उन्हें जाना और हमेशा यह तमन्ना रही कि कभी उनसे सीखने का अवसर मिले. वह अवसर तो पा नहीं सके पर अचानक एक दिन उनका भेजा उपहार मिला बिना किसी अवसर के ! चहेते कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ इतने सुन्दर स्वरुप में आशीर्वाद की तरह मिलीं. कविता का अक्षय पात्र ! जो चाहे इसमें समेटो ! जो चाहे बांटो !

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7 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा गुरुवार(०९-०४-२०२०) को 'क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?'( चर्चा अंक-३६६६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. बहुत .खूब। जिस को देखते ही स्मरण हो, वो उपहार। वैसे, कुछ लोग भी अमूल्य उपहार से कम नहीं होते।

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  3. बहुत खूब ... ,उपहार का सही मर्म दर्शाता सृजन ,सादर नमन

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  4. बहुत लाजवाब रचना.
    हर बात, हर सीख और अमर प्रेम उपहार ही तो हैं.
    नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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  5. बहुत प्यारी कविता नुपूर जी। कुछ रिश्ते ही मीठे बताशों से होते हैं फिर उनसे मिलनेवाले उपहार में माधुर्य क्यों ना हो !!!

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  6. उपहार के ख़ूबसूरत साहित्यिक आयाम प्रस्तुत करती सुंदर रचना।

    बधाई एवं शुभकामना।

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