बारिश के पानी में
छम-छम नाचते
पानी के बुलबुले
तैरते देख कर,
जब कोई बच्चा
दौड़ कर आता है,
बड़े चाव से
काग़ज़ की नाव
बना कर
पानी में बहाता है,
और सांस रोके देखता है
नाव डूबी तो नहीं !
देखते-देखते
जब हिचकोले खाती,
फिर संभलती,
नाव बहने लगती है,
और बच्चा उछलता
शोर मचाता,
अपार ख़ुशी से
ताली बजाता है . .
बारिश की बूंद-सा
वो मासूम लम्हा,
उस बच्चे को
ताउम्र,
ज़िन्दगी के किसी भी
भंवर में
डूबने नहीं देता।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयशोदा जी, आपका बहुत-बहुत आभार.
हटाएंयह अंक पढ़ा. अच्छा लगा.
यशोदा जी, आपने औरों को भी बड़े प्यार से पढवाई कागज़ की नाव.
हटाएंआभारी हूँ.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2020) को "आहत है परिवेश" (चर्चा अंक - 3587) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्रीजी, हार्दिक आभार. चर्चा का यह अंक भी अच्छा लगा. अब हिंदी की पत्रिकाएं मुश्किल से मिलती हैं. चर्चा यह कमी पूरी कर देती है. अपनी सम्पूर्णता और विविधता से.
हटाएंमासूम बचपन को दर्शाती रचना , उचित कहा आपने.
जवाब देंहटाएंकागज की नाव कभी डूबती नहीं, क्योंकि इसमें प्यारा- सा , निर्दोष और निश्छल बचपन जो सवार रहता है।
आपका हार्दिक धन्यवाद.
हटाएंनाव क्या ज़िन्दगी बचपन की मधुर स्मृतियों के सहारे तर जाती है.
बहुत खूब ..., लाज़बाब सृजन ,सादर नमन नूपुर जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, कामिनी जी.
हटाएंकाग़ज़ की इस नाव पर हम सब सवार हो चुके हैं !
वाह ! बचपन की मासूमियत से लबरेज कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, अनीता जी.
हटाएंबचपन की मासूमियत ही इंसानियत जिलाये रखती है, आदमी के मन में.
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... सुन्दर कविता...
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