शनिवार, 14 सितंबर 2019

अपनी लगती है हिंदी



हिंदी
भाषा नहीं
नदी है,
जो अविरल
बहती है,
गंगा यमुना
कावेरी गोदावरी
चेनाब रावी
ब्रह्मपुत्र की तरह
देश भर की
यात्रा करती हुई,
हर तट से
गले मिलती,
सुख-दुख बटोरती,
लोक संस्कृति
और बोली
समेटती हुई,
बहती ही जाती है ।


यह भाषा ऐसी है ।
सबको अपनाती है ।
अपनी लगती है ।

जैसे नदियां जोड़ती हैं,
सारे देश की कड़ी
स्नायुतंत्र की भांति,
धमनियों में हृदय की
धड़कती है हिंदी ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दिग्विजयजी, हार्दिक धन्यवाद. मौन कमल सा खिल उठा.

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  2. धन्यवाद शास्त्रीजी. अच्छा है चर्चा का विषय. वनवास भी चौदह वर्ष में पूरा हो जाता है.

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