मेघों से आच्छादित आकाश में
जब अनायास खिलता है इंद्रधनुष
जल की बूंदों से छन कर आती
सूर्य रश्मि के प्रखर तेज को ही
कहते हैं इच्छाशक्ति ।
दुख से जकड़े घोर अंधकार में
जब सब हो जाता छिन्न-भिन्न
हारा मन होता टूक-टूक हो मूक
आस का दीप बने जीवट को ही
कहते हैं इच्छाशक्ति ।
दुर्घटना की असह्य विडंबना में
श्वास जब बूंद भर तन में रह जाए
तब झंझावत में डटी अडिग लौ सम
प्राण जगाने वाले मनोबल को ही
कहते हैं इच्छाशक्ति ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-09-2019) को "बनकर रहो विजेता" (चर्चा अंक- 3457) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --शिक्षक दिवस कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्रीजी, हार्दिक आभार ।
हटाएंकोशिश करना भी जीतना होता है ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 13 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदाजी । बहुत दिनों से हलचल और ब्लॉग बुलेटिन के पन्नों पर जगह नहीं मिलती । जाने क्या बात हुई .... सोच ही रहे थे कि आपका संदेस आ गया ।
हटाएंवाह!!बहुत खूब!👍
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया, शुभा जी । नमस्ते ।
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