मंगलवार, 12 मार्च 2019

पार उतराई




कोई दुख
होता है ऐसा
जो कभी भी
कहते नहीं बनता। 

कविता में नहीं,
कथा में नहीं,
बंदिश में नहीं,
रंगों में नहीं,
बस चुपचाप
बहता रहता है
भीतर कहीं,
चौड़े पाट की
नदी की तरह ।

तट कभी भी
मिलते नहीं ।
पर उम्मीद भी
कभी टूटी नहीं ।
अब भी 
लहरों में ढूंढती
नाव केवट की,
जो पार उतारती
प्रभु राम को भी,
लिए बिना ही
पार उतराई ।


19 टिप्‍पणियां:

  1. तट कभी भी
    मिलते नहीं ।
    पर उम्मीद भी
    कभी टूटी नहीं ।
    बेहतरीन रचना ....

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    1. धन्यवाद कामिनी जी.
      आस की पतवार का आसरा बड़ा है.

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  2. तट कभी भी
    मिलते नहीं ।
    पर उम्मीद भी
    कभी टूटी नहीं ।
    मन को गहरे से स्पर्श करती लाजवाब भावाभिव्यक्ति । बेहद खूबसूरत सृजन ।

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    1. आप समझीं. बहुत आभारी हूँ.
      जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ ..
      यह बात केवट ने ही समझी.

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    2. वाह सुंदर¡
      गहरे आध्यात्म भावों को समेटे मन की बिखरती संवरती आशाओं का मोहक संगम।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. धन्यवाद श्वेता जी.
    कल नाव किनारे लगेगी.

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  5. कोई दुख
    होता है ऐसा
    जो कभी भी
    कहते नहीं बनता।
    सटीक सार्थक एवं सुन्दर रचना...
    वाह!!!

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    1. सुधाजी,बहुत-बहुत शुक्रिया.
      हम सबको मिले अपनी-अपनी नैया का खेवैया.

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  6. बंदिश में नहीं,
    रंगों में नहीं,
    बस चुपचाप
    बहता रहता है
    भीतर कहीं,
    चौड़े पाट की
    नदी की तरह ।...बहुत सुन्दर आदरणीया

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    उत्तर
    1. शुक्रिया अनीता जी.
      हम सबके भीतर ये नदी बहती है अविरल.
      कोई डूब जाता है कोई पार हो जाता है.

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  7. बहुत सुंदर और सारगर्भित अभिव्यक्ति...

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    1. धन्यवाद शर्मा जी.
      आपने इस तट पर अपनी नाव बांधी. शुक्रगुज़ार हूँ.

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  8. कितने सुंदर भाव भरे हैं आपने इस रचना में
    बार बार पढ़ा, काफी अच्छा लगा

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    1. भास्कर जी,अत्यंत आभारी हूँ.
      इस भाव की नदी की लहरों ने बार-बार आपके तट के भिगोया होगा.

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  9. कोई दुख
    होता है ऐसा
    जो कभी भी
    कहते नहीं बनता।
    वाह ..... लाजवाब आदरणीया

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    उत्तर
    1. धन्यवाद रवीन्द्रजी.
      नदी के तल में क्या है ..शायद लहरों को भी नहीं पता. सतह पर ही जो रह जाती हैं.

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