रविवार, 28 अक्तूबर 2018

शरद का चंद्रमा



झोंपड़ी में बसेरा हो
या अमीरों की बस्ती में
जहां भी बसता हो,
हर किसी के पास आज
शहद में घुला
बताशे-सा ..
शरद की नरम ठंड में
रुई के फाहों से
बादलों में दुबका..
दूधिया चाँद है ।

खुले आसमान की
बादशाहत सबके पास है ।

बेइंतेहा खूबसूरत नज़ारा
अमनो-चैन की घड़ी
और दिलों में खुशी
पाकीज़ा चांदनी सी ..
कुछ देर ही सही,
इस बेशुमार दौलत का
आज हर कोई हक़दार है ।

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-10-2018) को "मन में हजारों चाह हैं" (चर्चा अंक-3139) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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    1. हार्दिक आभार राधा जी.
      शीर्षक बड़ा दिलचस्प है...मन में हज़ारों चाह हैं .....

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  2. उत्तर
    1. ख़ूबसूरती बादलों में दुबके चाँद की !
      सराहना आपकी !
      अनुराधा जी धन्यवाद !

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 30 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार यशोदाजी.
      आनंद की चौपाल में कल भेंट होगी.
      नमस्ते.

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  4. आभार आपका शिवम् मिश्राजी.
    आपका आगमन होता रहे नमस्ते पर.

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  5. Excellent article! We are linking to this great content on our website.
    Keep up the good writing.

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  6. प्राकृति तो सन की साझा है ... ये भेड़ नहि करती ...
    चाँद तो आपकी प्रीत है ... भावपूर्ण रचना ...

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  7. जी शुक्रिया दिगंबर जी. किसी ने क्या खूब कहा है कि दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ें बिलकुल मुफ़्त हैं ! सहज उपलब्ध हैं !

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  8. उत्तर
    1. धन्यवाद अभिलाषा जी ।
      एक बताशा चाँद से आप भी मुँह मीठा कीजिये !

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  9. धन्यवाद अनीता जी.
    चंद्रमा का एक बताशा आपके लिए भी !

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  10. पाकीज़ा। The poem painted a hundred sweet scenes infront of my eyes.

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