जब-जब कलम लिख नहीं पाती ,
ख़ुद से बात नहीं हो पाती ।
मन पर एक बोझ-सा बना रहता है ,
मन घुटता रहता है ;
जैसे आकाश में चारों तरफ़
घुमड़ रहे हों बादल .
वर्षा की प्रतीक्षा
जैसे करती है धरा ,
चुप्पी साधे ,
मन भी बाट तकता है
अनुभूतियों के आगमन की ,
भावनाओं की अभिव्यक्ति की .
आह ! डबडबाते हैं बादल
पर वर्षा नहीं होती ,
तरसती रहती है धरती .
धैर्य की चरम सीमा
छूकर जब मन है पिघलता ,
होती है वर्षा .
झूम-झूम कर स्वागत करती है
समस्त वसुधा,
शब्द-शब्द का . .
छम-छम नाचती है
बूंदों की श्रृंखला .
मिट्टी में दबा बीज जाग उठता है .
कवि हृदय में कविता का अंकुर फूटता है .
sunder rachna !
जवाब देंहटाएंसच्चे रचनाकार के मन की वास्तविक अभिव्यक्ति,सुन्दर उपमा।
जवाब देंहटाएंbahut sundar
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