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शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

लिखने से पहले




जब-जब कलम लिख नहीं पाती ,
ख़ुद से बात नहीं हो पाती ।

मन पर एक बोझ-सा बना रहता है ,
मन घुटता रहता है ;
जैसे आकाश में चारों तरफ़ 
घुमड़ रहे हों बादल . 
वर्षा की प्रतीक्षा 
जैसे करती है धरा ,
चुप्पी साधे ,
मन भी बाट तकता है 
अनुभूतियों के आगमन की ,
भावनाओं की अभिव्यक्ति की .    
आह ! डबडबाते हैं बादल 
पर वर्षा नहीं होती ,
तरसती रहती है धरती . 

धैर्य की चरम सीमा 
छूकर जब मन है पिघलता ,
होती है वर्षा . 
झूम-झूम कर स्वागत करती है 
समस्त वसुधा,
शब्द-शब्द का . . 
छम-छम नाचती है 
बूंदों की श्रृंखला .

मिट्टी में दबा बीज जाग उठता है . 
कवि हृदय में कविता का अंकुर फूटता है .  



3 टिप्‍पणियां:

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