सड़क के किनारे ,
फुटपाथ पर
बैठे थे,
शायद एक ही परिवार के
कुछ लोग ।
औरतें,आदमी, बच्चे . .
सब लगे हुए थे
फूलों की माला गूंथने में ।
सधे हुए हाथ
फुर्ती से चल रहे थे ।
चारों तरफ उनके
फूलों के ढेर थे ।
लाल , सफ़ेद , पीले
फूल खिले - खिले ,
एकदम ताज़े ,
और पत्ते हरे ।
इन्ही फूलों और लोगों के बीच
एक शिशु सोया था
दरी पर ,
दीन - दुनिया से बेख़बर
गहरी नींद में ।
उसका भोला चेहरा
लग रहा था ,
अनेक फूलों के बीच
एक निश्छल मासूम फूल ।
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जवाब देंहटाएंशुक्रिया सूरजजी ।
हटाएंअच्छी है। पसंद आई। कविता ने अचानक दिशा बदली और आकस्मिक रूप से ठहर गई। उस ठहराव ने बच्चे के चेहरे, और कविता को भी, और भी सुंदर बना दिया। ख़ुश रहिये।
जवाब देंहटाएंपढने का सिलसिला बनाये रखियेगा ।
हटाएंसर पर हाथ रखे रहिएगा ।
शुक्रिया ।