हारसिंगार का पौधा ।
किताबों में पढ़ा था ,
हारसिंगार का खिलना
कितना मन को छूता है ।
उपन्यासों में पढ़े थे ,
कितने भावुक प्रसंग
हारसिंगार से जुड़े हुए ।
कितने भावुक प्रसंग
हारसिंगार से जुड़े हुए ।
गीत के बोलों में …
हारसिंगार झरते थे ।
बहुत भाता था तुम्हें ,
हारसिंगार का झरना ।
दूर गाँव हो गया ।
पर तुम्हारे घर की
पहरेदारी कर रहा ,
फूलों से सजा हुआ
हारसिंगार का कोना ।
लोग ले जाते हैं ,
अब भी
फूल चुन के ,
हमेशा की तरह ।
पहचानते हैं ,
भीनी - भीनी
सुगंध की बयार ।
झोली भर लेते हैं ,
लोग तुम्हें
हारसिंगार के बहाने
याद बहुत करते हैं ।
कल ही की तो बात है। शाम को किसी से मिलने जा रहा था। उनकी कॉलोनी की गलियों से गुज़रते हुये अचानक एक भूली हुई ख़ुशबू आई। भीनी भीनी सी। और मोड़ पर मुड़ते ही हर तरफ़ हरसिंगार बिखरे पड़े थे। क़दम रुक गये। दिल ज़ोर से धड़का; और दर्द से भर गया। बचपन के न जाने कितने लम्हे एक पल में आँखों के सामने आ कर नाचने लगे। सूई में धागा पिरोने की मशक्कत, और एक एक फूल को उतने ही ध्यान से पिरोना। किताबों में दबा फूल जो ताज़ा है तो ख़ुशबू देता, जो सूखता तो रंग बिखेर देता।
जवाब देंहटाएंरुके हुये क़दम बड़ी मुश्किल से उठे। सीने में उठा दर्द देर तक बाक़ी रहा। मगर आज जब आप की क़लम से बिखरे हुये हरसिंगार पर क़दम पड़े तो लगा दिल की धड़कन रुक सी गई है। तुम्हारा लगाया हुआ हरसिंगार का पौधा....... आह। यह दर्द तो कल बाक़ी रह गया था। कविताओं के छंदों और गीत के बोलों में हरसिंगार, हरसिंगार से सजा घर का कोना, हरसिंगार के बहाने याद करना.... हरसिंगार को हरसिंगार ही रखें तो कविता अति उत्तम है। और अगर हरसिंगार को प्रेम की उपमा के तौर पर लें, तो नूपुर जी, मेरे पास प्रशंसा के लिये शब्द नहीं हैं।
माँ सरस्वती की कृपा है आप पर नूपुर। ख़ुश रहें। लिखती रहें॥
शम्स साहब ! आप कल्पना नहीं कर सकते कि इतने अरसे बाद आपका कमेन्ट देख कर कितनी ख़ुशी हुई ! एक वजह ये कि इसका मतलब आप अब स्वस्थ हैं । और दूसरी बात ये कि हमारी उम्मीद लौट आई । आपकी बातों से बहुत हौसला मिलता है । आपका वक्तव्य पढने के बाद हम एक बार फिर से अपनी ही कविता पढ़ते हैं । एक नयी दृष्टि से ।पता नहीं कोई पढता है कि नहीं, वोट तो इक्का दुक्का ही मिलते हैं । पर आपका पढ़ लेना और कुछ कहना ही बहुत है मायूसी मिटने के लिए । जिस तरह धुप रोज़ आती है ,उसी तरह आप अपना हाथ सर पर रखे रहिएगा ।
हटाएंधन्यवाद् झा साहब ।
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