फ़ैसला आ गया ।
आख़िर , फ़ैसला आ गया ।
फ़ैसला सुन कर
हमारी प्रतिक्रिया
क्या होनी चाहिए ?
एक सही फ़ैसले पर
खुश होना चाहिए ?
निश्चिन्त होना चाहिए ?
कि अब ऐसे अपराध
कम होंगे . .
अपराध करने वाले डरेंगे ?
और फिर जीवन 'चलता' होगा,
अपने रस्ते ।
सब कुछ चलता रहेगा ,
जैसे चलता है ।
जैसे लट्टू घूमता है
अपनी धुरी पर ।
तब तक ,
जब तक
अगले बलात्कार की ख़बर
नहीं आ जाती ।
और अफ़सोस कि वो 'अगली बार '
आने में
ज़्यादा देर नहीं लगती ।
अगला समाचार . . .
वही दुराचार ।
फिर वही सवाल ।
फिर वही बवाल ।
समाधान क्या है ?
शुरुआत क्या
अपने घर से
की जा सकती है ?
क्या अपने बेटे को
माँ ये समझा सकती है
कि स्त्री की देह कोई
चीज़ नहीं
जिससे जैसे चाहे
खेला जाये ।
स्त्री की देह
वो नेमत है,
जिसके रहते
तुम्हारा जन्म हुआ है ।
इस स्त्री देह को
जब भी छुओ,
सम्मान से छूना ।
कभी मत भूलना !
इस स्त्री को जो
चोट पहुँचाओगे,
अपने - आप को कभी
माफ़ नहीं कर पाओगे ।
बहुत समसामयिक.
जवाब देंहटाएंकोई राह निकलेगी यहाँ से .
बहुत समसामयिक. कोई राह निकलेगी यहाँ से .
जवाब देंहटाएंकितना चमत्कारी है : रुद्राक्ष
rajeevji, ummeed pe duniya qayam hai.
जवाब देंहटाएं