शनिवार, 14 सितंबर 2013

समाधान





फ़ैसला आ गया । 

आख़िर , फ़ैसला आ गया ।   
फ़ैसला सुन कर 
हमारी प्रतिक्रिया 
क्या होनी चाहिए ?

एक सही फ़ैसले पर 
खुश होना चाहिए ?
निश्चिन्त होना चाहिए ?
कि अब ऐसे अपराध 
कम होंगे  . . 
अपराध करने वाले डरेंगे  ? 

और फिर जीवन 'चलता' होगा, 
अपने रस्ते ।  
सब कुछ चलता रहेगा ,
जैसे चलता है ।   
जैसे लट्टू घूमता है 
अपनी धुरी पर ।  

तब तक ,
जब तक 
अगले बलात्कार की ख़बर  
नहीं आ जाती । 
और अफ़सोस कि वो 'अगली बार ' 
आने में 
ज़्यादा देर नहीं लगती ।   

अगला समाचार  . . .  
वही दुराचार । 

फिर वही सवाल ।  
फिर वही बवाल ।   

समाधान क्या है ?

शुरुआत क्या 
अपने घर से 
की जा सकती है ?
क्या अपने  बेटे को 
माँ ये समझा सकती है 
कि स्त्री की देह कोई 
चीज़ नहीं 
जिससे जैसे चाहे 
खेला जाये ।   
स्त्री की देह 
वो नेमत है, 
जिसके रहते 
तुम्हारा जन्म हुआ है ।   
इस स्त्री देह को 
जब भी छुओ, 
सम्मान से छूना ।   

कभी मत भूलना !
इस स्त्री को जो 
चोट पहुँचाओगे,
अपने - आप को कभी 
माफ़ नहीं कर पाओगे ।     




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