कविता की व्यथा ,
चुभती, कचोटती कथा .
कांच का टुकड़ा ,
कलेजे में उतरा .
जो कहना मना था ,
वही कह बैठा .
आंसुओं का सिलसिला ,
भीतर तक पैठा .
कितना कुछ कहना था ,
जब कहने बैठा ..
शब्दों की विवेचना
में उलझ बैठा .
उधेड़बुन से छूटा
तो भावनाओं में डूबा .
डूबा तो जाना ,
कविता की व्यथा ,
होती है क्या .
व्यथा में पिरोया
मोती कविता का ,
कविता की मार्मिक कथा .
bade hi shashakt shabd....bahut khoob
जवाब देंहटाएंहूँ.... तो ये बात है.. बात भी है तो क्या है... व्यथा, और वह भी कविता की.... या यूं कहें - क्या बात है।
जवाब देंहटाएंडूबा तो जाना.... यही तो समस्या है। डूबे बिना सत्य के दर्शन ही नहीं होते। 'जिन ढूंढा तिन पाइयां, गहिरे पानी पैठ।' हृदय में डुबकी मारनी ही पड़ती है। और कोई शक नहीं कि आँसू बाहर आ कर अन्तःकरण का आईना बन जाते हैं। 'जो आँख ही न टपका तो फिर लहू क्या है।' पैठा का प्रयोग बहुत पसंद आया है जी।
'अबला तेरी यही कहानी' में अगर अबला की जगह आप की कविता रख दें, तो अधिक अंतर नहीं पड़ेगा नूपुर जी। बेहतरीन रचना है। व्यथा में पिरोये मोतियों की माला टूट गई है, और मोती हर तरफ बिखरे पड़े हैं। जो चुन सके, वह चुन ले। हमने तो अपना दामन भर लिया। खुश रहें। लिखती रहें॥