सबके रहते हुए भी ,
कुछ युद्ध ऐसे होते हैं
जो अकेले
लड़ने पड़ते हैं .
अपनी लक्ष्मण रेखा
पार करने का
साहस
स्वयं करना पड़ता है .
अपनी सीमाओं को
अपने ही असीमित बल से
असीम संभावनाओं में
स्वयं बदलना पड़ता है।
भवितव्य का छल
खुद ही नियति के
धक्के खाकर,
अपनी ही हिम्मत के
बूते पर,
अकेले झेलना पड़ता है,
अकेले ही संभालना पड़ता है ।
एक यात्रा
अपने ही भीतर
निरंतर
एकाकी तय करनी होती है .
अपने ही भीतर
एक गुफा है
जिसका सन्नाटा भेद कर
खुद ही कोई
सुर ढूँढना पड़ता है।
अपने ही भीतर
एक टापू है
जिस पर
अकेले खड़े
हम हैं ;
इस अकेलेपन से
अकेले
सामना करना पड़ता है,
नाव खेकर अपनी
आप ही
अपना तट खोजना पड़ता है .
अपने ही भीतर
एक आवाज़ है
जो सिर्फ हमें सुनाई देती है ,
हमें दुहाई देती है,
वास्ता देती है
हर अव्यक्त भाव का ,
उपेक्षित बात का .
सबके बीच होकर भी
अकेले ही
अपनी कथा की परिणति
आप ही चुननी होती है .
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