शनिवार, 28 अप्रैल 2012

चिट्ठी



चिट्ठी में चेहरा दिखता है,
मन का हर कोना दिखता है.

आड़ा-तिरछा पता लिखा है,
जल्दी में भेजा लगता है.

स्याही में घुल-मिल गया है,
आंसू जो टपका लगता है.

बड़े जतन से लिखा गया है,
हर अक्षर मोती जैसा है.

मन में तो बातों के पुराण हैं,
लिख कर केवल दोहा भेजा है.

कहने को निरा लिफ़ाफ़ा है,
पर मन का मीत मुझे लगता है.

जो कहते नहीं बनता है,
चिट्ठी में लिखा जाता है.

चिट्ठी में चेहरा दिखता है,
मन का हर कोना दिखता है.


3 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद पढने के लिए .
      आपकी रचना ने पुरानी चिट्ठियों की याद दिला दी थी .
      एक-सी कसक थी दोनों के मन में .

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  2. सच है, चिट्ठी शाब्दिक दर्पण है जिसमें चाहते के साथ मन अक्स भी दिखता है. सुंदर कविता है!

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