शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

गणतंत्र स्व तंत्र

गणतंत्र स्वतंत्र 

मतलब स्व तंत्र 

अपना बनाया तंत्र 

सुनियोजित व्यवस्था

फिर किसी से शिकायत क्या ?

शिकायत क्या और बगावत क्या ?

सब किया-कराया तो है ही अपना ।

अब भी सब कुछ पङेगा स्वयं ही करना ।

झाङना-बुहारना,सुधारना,बदलना,

अपने ही तंत्र को दुरुस्त करना ।

दुरुस्त रखना ..गणतंत्र 

सबका और अपना बनाया तंत्र 

हमारा गणतंत्र स्व तंत्र।


बुधवार, 24 जनवरी 2024

राम



कण कण में बसते सिया राम 

जन जन के मानस में राम 


बजरंग बली के हिय में राम  

भ्राता भरत के तप में राम 


शबरी की शरणागति में राम 

केवट की निश्छल भक्ति में राम 


जटायु के बलिदान में राम 

विभीषण के समर्पण में राम 


नल नील के कौशल में राम 

वानर सेना के बल में राम 


संकल्प की शुचिता में राम 

सत्कर्म की दृढ़ता में राम 


भाव की अविरल धारा राम 

भक्त का एकमात्र अवलंब राम 



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चित्र अंतरजाल से साभार 

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

उत्तरायण


समय ने करवट ली ,

सूर्य ने दिशा बदली,

धूप मेहरबान हुई, 

पवन कम सर्द हुई । 

सृष्टि की तंद्रा टूटी ।


खेतों में खुशहाली !

पकी फसल झूमती ,

रंग चटकने लगे,

ऊष्मा भरते हुए 

धरती की गोद में ।


मेरे मन की उमंग

बन गई उङती पतंग !

सतरंगी सपनों सी,

छा गई गगन पर 

बिंदियाँ हर रंग की !


गोटियाँ खेल की ,

सरपट दौङने लगीं !

अबके होङ मच गई  !

चंदा वाली ऊँची गई 

पर हरी पिछङ गई!


मगर कोई बात नहीँ!

ये तो बस एक जंग है !

कहीं बज रही चंग है !

पतंग उङाता है कोई !

मगर लूटे कोई और है ! 


डोर से बंधी हुई 

हर एक पतंग है !

फिर भी वो इठलाती

नागिन-सी सरसराती

चली सूर्य की ओर है ।


आँखोँ में आँखें डाल 

पूछती कई सवाल!

अंक में भर उजास 

थिरकती परांदी सी

घूम रही गाँव-गाँव ।


लंबी चोटी वाली

बार-बार बल खाती

करती हुई मुनादी 

तिल-गुङ मिलेगा उसे

जो बोल मीठे बोल दे !


उङा ले पतंग जी भर,

बादलों से भी ऊपर,

जो नज़रें मिला ले, 

धूप के रथ पर बैठे

सजीले सूरज से !


की थी जो मनौती,

दी थी जो चुनौती,

आसमान रंगने की ।

जीत ही ली बाज़ी !

रुपहले इंद्रधनुष से ! 


धरती के इस छोर से 

नभ के उस छोर तक

हर रंग की पतंग है !

डोर हाथ में हो अगर

आकाश कहाँ दूर है !


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चित्र : अंतरजाल से साभार