शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

आषाढ़ी एकादशी का नमन




तीन गुलाब 
खिले एक साथ !
छोटे से पौधे पर !
पात-पात पर आई बहार !
चतुर्दिक छाई रौनक़ !

वर्षा हो रही थम-थम  .. 
बूंदों का जलतरंग कर्णप्रिय 
सुन कर गदगद मन मयूर 
फैला कर इंद्रधनुषी पंख 
बाँध कर बूंदों के नूपुर  
नृत्य कर रहा झूम-झूम !

मन मगन बना विशाल गगन 
तब प्रस्तुत हुआ यह प्रश्न  .. 
मुरझा जाएं ये सुमन  .. 
उससे पहले ही इनको चुन 
कैसे करूँ इनका अभिनन्दन ?
क्योंकि इनकी छटा है अनमोल !

तभी सुना वारकरी का मधुर गान
पांडुरंग हरि विट्ठल ! विट्ठल विट्ठल !
रोली से लाल स्निग्ध तीन गुलाब
किये ठाकुर सेवा में सहर्ष अर्पित 
मन का दीप बाल किया हरि का वंदन।  

  

रविवार, 7 जुलाई 2019

जलमय सजल मन




जो पूछना नहीं भूलते
कैसे हैं आपके पौधे ..
उन्हें पता है
आपकी जान बसती है
अपने पौधों में,
जैसे कहानियों में
अक्सर राजा की
जान बसती थी
हरे तोते में ।

उन्हें आभास है
जीवन की
क्षणभंगुरता का ।
इसलिए जी उनका
उत्साह से छलकता
स्वच्छ ताल गहरा..
जिसमें खिलते
अनुभूति के कमल ।
जल में सजल
जीवन का प्रति पल ।


सोमवार, 27 मई 2019

जिजीविषा और दुआ



आज 
यह फूल खिला
उस पौधे पर,
जिस पौधे की
लगभग इति
हो चुकी थी ।

पर जब
किसी ने कहा,
चमत्कारी
होती है आशा..
और सेवा,
उस भरोसे ने
पौधा फेंकने
नहीं दिया ।

दिन-रात बस
मन में मनाया
जी जाए पौधा ।

मिट्टी खाद धूप जल
और देखभाल ने
पौधे में रोप दी
जिजीविषा ।

आशा ने
औषधि का
काम कर दिखाया ।

आज सुबह देखा
ऐसा फूल खिला !
मानो किसी ने
मांगी हो दुआ ।

रविवार, 12 मई 2019

कर्णफूल


आज ही खिले
ये फूल !
सुबह-सुबह इनकी
भीनी-भीनी
सुगंध ने
हिला कर जगाया ।

उठते ही 
स्मरण हो आया..
मोती सरीखी
जो कली थी,
संभव है
खिल गई हो !

भाग कर 
खिड़की से
झांक के देखा ।
सचमुच
फूल खिले थे !

शरारत से
मुस्कुरा के
हिल-हिल के
हौले-हौले
अभिवादन
कर रहे थे ।

दिन-प्रतिदिन
कई दिनों तक
पौधे को सींचना
पालना-पोसना
जब-तब
बार-बार देखना कहीं
फूल तो नहीं खिला !

देखते रहो !
संभव है
आंखों के सामने ही
फूल खिल जाए !

जतन कर के
पाले-पोसे
पौधे पर
जब फूल खिलता है,
उसे देखने की
खुशी से बढ़ कर
कोई खुशी नहीं होती ।

हाँ जी !
आज ही खिले
मन-उपवन में
कर्णफूल से फूल !

गुरुवार, 2 मई 2019

भई ये लोकतंत्र है




भई ये लोकतंत्र है ..
वो भी संसार का सबसे बड़ा !
कोई क्या कह सकता है किसी को !
पर भाइयों और बहनों कभी तो सोचो !
हम इस लोकतंत्र में रहने लायक हैं क्या ?
लोकतंत्र में रहने के कर्तव्य हमें क्या होंगे पता !
संविधान में दिए अधिकार भी मालूम हैं क्या ?
फिर किसको देते हो किसका वास्ता ?
कैसा वास्ता ? मेरे भाई कैसा वास्ता ?
बंद करो ऊँची आवाज़ में चिल्लाना !
कुछ नहीं तो नागरिकता का ही पाठ पढ़ो !
खुद समझो और समझने में मदद करो !
केवल नारों से मत कृतार्थ करो जन मानस को !
अपने सिद्धांतों को खंगाल अब अमल करो !
नीचे उतरो मंच से, आसन छोड़ो और श्रम करो !
नेता को अपशब्द कह छाती मत ठोंको !
नेता हम जैसा है ! हमारे बीच से ही आता है ।
वह देश भक्त ना रहे तो अपदस्थ करो !
पर बाहर तो निकलो बिल से और वोट करो !
अफ़सर और नेता को समझाने से पहले
ख़ुद तो पहले ज़िम्मेदारी अपनी समझो !
जम कर आलोचना करो यदि उचित हो !
पर काम करो खुद भी और सबको करने दो !