मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

बेटी ने कहा




पापा मुझे बेटा
मत कहिए ना ।

आपकी बेटी हूँ मैं ।
बेटी ही रहने दीजिए ना ।
बेटी होना कम है क्या ?

आपकी जीवन रागिनी का
सबसे कोमल स्वर हूँ मैं ।
आपके हृदय में,
माँ के अनुराग का
सुंदरतम स्पंदन हूँ मैं ।

आप क्यों डरते हैं इतना ?
मुझे कुछ नहीं होगा ।
आप तो भैया से ज़्यादा
मुझे प्यार करते हैं ना ?
फिर बेटी को बेटा कहना
ज़्यादा फ़क्र की बात है क्या ?
या बेटी का कन्यादान करना
उसे खो देने जैसा लगता है क्या ?

पापा क्यों है ऐसा ?
भैया भी तो है आपका बेटा ।
नहीं भी है तो क्या हुआ ?

छोड़ दीजिए ना
खांचे में ढालना ।
बेटे को बेटा
बुलाते हैं ना ?
फिर बेटी को भी,
बेटी ही कहिए ना ।
आपकी
कमज़ोर नब्ज़  बने रहना,
मेरी सबसे बड़ी ताक़त है..
आप समझ रहे हैं ना ?
सारी दुनिया
मुझे नकार दे भले
नेस्तनाबूद मुझे
कर सकेगी ना !
क्योंकि चाहे जो हो जाए,
पता है मुझे
पापा मेरे
हमेशा मेरे साथ हैं ना ।

सब देख रहा है भैया ।
आपसे सीख रहा है भैया ।
उसे भी ये समझने दीजिए ना ।
बेटी को बेटी ही कहिए ना ।

अपनी फुलवारी में रंग-रंग के
बड़े जतन से पौधे लगाए आपने ।
सबको अपनी-अपनी क्यारी में
अपने रंग में खिलने दीजिए ना ।

बेटी को बेटी ही पुकारिये ना ।
पापा मुझे बेटा मत कहिये ना ।



मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

जीवन की आभा



कविता में 
जीवन की आभा है।

जीवन में 
यदि कविता 
सजीव हो उठे,

जीवन और कविता 
दोनों की शोभा है।   

रविवार, 14 अक्तूबर 2018

कविता तो वो है




कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।
सान पर 
चढ़ाया जा सके ।

विसंगतियों की
तेज़ धार पर
आज़माया जा सके ।
जिसके बूते पर
अपने सिद्धांतों पर
अड़ा जा सके ।

कविता तो वो है
जिसे जीवन गढ़े
मूर्तिकार की तरह ।
जो मिटाए ना मिटे
गोदने की तरह ।

या फिर वो है
जिसे मन की मिट्टी में
बोया जा सके ।
दिन-प्रतिदिन के चिंतन में
रोपा जा सके ।

कविता तो वो है
जो सहज सहेली बन
जी की बात
झट जान जाए ।

कविता तो वो है
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में 
जनम घुट्टी की तरह 
घोला जा सके ।

कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।


बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

झिलमिलाती बूँद











जिन पौधों को
तुम सींचती हो
श्रम जल से,
उनके पत्तों पर
ठहरी एक बूँद,
अपनी आंखों में
रख ली है मैंने,
बिना तुम्हें बताए,
ये सोच के
कि एक दिन
जब वो बूँद
अश्रु जल से
सींचते-सींचते
मोती बन जाएगी
और तुम्हें
सौंपी जाएगी,
तो झट से
तुम्हारी आंखों की
चमक बन जाएगी ।
अनकहे भावों की
खुशी झिलमिलायेगी ।



बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

राग





सघन वृक्ष की 
ममतामयी छांव में,
कुहू कुहू
कोयल कूक रही है ।
और मन ही मन
सोच रही है,
जीवन पथ जाने
कहाँ-कहाँ ले जाएगा ।


इस पथ पर चलने वाला
क्लांत पथिक क्या,
मेरी तान सुन कर
कुछ पल चैन पाएगा ?
यदि ऐसा हो पाएगा,
उसकी थकान दूर कर
मेरा मन सुख पाएगा ।


गान मेरा
सार्थक हो जाएगा ।
जब मेरा गायन
जन-जन के मन में
सोया राग जगाएगा ।






शनिवार, 22 सितंबर 2018

पिता नहीं होते विदा










                              











बप्पा यदि जाएं ही ना
हमें छोड़ के
कभी घर से
तो अच्छा हो ना ?
सदैव मंगल हो ना ?

पर विसर्जन में
बप्पा जाते हैं क्या ?
ऐसा हमें लगता है ना ?

पर पिता
बच्चों से दूर कभी नहीं जाते ।

विसर्जन होता है उसका
जो जीवन में नहीं खपता ।
दुख ग्लानि आक्रोश कुंठा का
जो भी निभ नहीं सकता ।

जो अपना हो, कभी नही जाता,
बप्पा विराजते हैं मन में सदा ।



हम बस गर्व करते रहेंगे ?

हम गर्व तो नहीं करते रह सकते।
उसने कहा।

छर्रे की तरह
उसका ये कहना
चीर गया।

उसने कहा
क्योंकि उसका कोई अपना
शहीद हुआ था।
वो ख़बर पढ़ कर 
नहीं बोला।

ज़माने ने पढ़ा
आगे बढ़ गया ।
शहीद का कुनबा
ठगा-सा रह गया।
इसलिए बोला।

अब क्या होगा ?
दो जून रोटी का
जुगाड़ कैसे होगा ?
पहाड़ से जीवन का
हिसाब कैसे होगा ?
सब जुटाना होगा।

गर्व से क्या होगा ?
कल फिर कोई शहीद होगा।
सारे देश को गर्व होगा।
फिर क्या होगा ?

कभी सोचा ?
बस गर्व करने से क्या होगा ?

कभी नहीं सोचा।
क्योंकि हमारा अपना
शहीद नहीं हुआ।

जो शहीद हुआ।
आंकड़ा था।
अपना नहीं था।
इसलिए फिर गर्व हुआ।

पर उसने कहा -
हम हमेशा,
गर्व तो नहीं करते रह सकते।