कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।
जिसे जिया जा सके ।
सान पर
चढ़ाया जा सके ।
विसंगतियों की
तेज़ धार पर
आज़माया जा सके ।
तेज़ धार पर
आज़माया जा सके ।
जिसके बूते पर
अपने सिद्धांतों पर
अड़ा जा सके ।
अड़ा जा सके ।
कविता तो वो है
जिसे जीवन गढ़े
मूर्तिकार की तरह ।
जिसे जीवन गढ़े
मूर्तिकार की तरह ।
जो मिटाए ना मिटे
गोदने की तरह ।
गोदने की तरह ।
या फिर वो है
जिसे मन की मिट्टी में
बोया जा सके ।
दिन-प्रतिदिन के चिंतन में
रोपा जा सके ।
जिसे मन की मिट्टी में
बोया जा सके ।
दिन-प्रतिदिन के चिंतन में
रोपा जा सके ।
कविता तो वो है
जो सहज सहेली बन
जी की बात
झट जान जाए ।
जो सहज सहेली बन
जी की बात
झट जान जाए ।
कविता तो वो है
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में
जनम घुट्टी की तरह
घोला जा सके ।
कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।
जिसे जिया जा सके ।
बेहतरीन रचना नुपुर जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधाजी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी ।
हटाएंनमस्ते ।
हार्दिक आभार यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते ।
कविता स्लेट पे लिखे अमिट शब्द जो सदा चमकते रहें ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है ...
दिगंबर जी,
हटाएंस्लेट पर लिखे हैं शब्द
तो कभी ना कभी
मिटाए जाएंगे ही..
पर कविता
बची रहेगी
ध्रुव तारे सी चमकती
मन के आकाश में कहीं.
धन्यवाद. नमस्ते.
बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने कविता को परिभाषित किया है नुपुर जी
जवाब देंहटाएंअभिलाषा जी,धन्यवाद.
हटाएंपरिभाषित ना करने की
कोशिश में
बार-बार कही जाएगी.
कविता तो प्रतिबिम्ब है
मन की भावना का,
जैसी होगी
अंतःकरण की छवि,
वैसी ही
दर्पण में
नज़र आएगी.
आपका आभार.नमस्ते.
कैलेंडर कविता कोष का है. पुस्तक नवांकुर प्रकाशन की है.
जवाब देंहटाएंदोनों का हार्दिक आभार.
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी.
हटाएंदेखने वाले की दृष्टि सुन्दर हो, तब ही ऐसा होता है.
नमस्ते.
अति सुंदर और निरा सत्य परिभाषित किया है आपने शुभकामनाएं नूपुर जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुप्रिया जी.
हटाएंजितनी बार कही जाएगी,
कविता की परिभाषा
हर बार
बदल जाएगी.
आभार आपका.नमस्ते.
वाह बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंकविता क्या है ये भी खुद कवि के व्यक्तिगत विचार है बहुत सुंदरता से आपने अपने भाव रखे कविता के लिये।
बधाई।
धन्यवाद कुसुमजी.
हटाएंजितनी बार
जितने चश्मों से देखा,
कविता को हर बार
नए रूप में देखा.
कविता की विविधता
गढ़ती सुन्दरता.
नमस्ते.
बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधाजी.
हटाएंआपका स्नेह संबल सुन्दरतम है. हार्दिक आभार.
मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंसच्च कहा आपने -
जवाब देंहटाएं"...
कविता तो वो है
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में
जनम घुट्टी की तरह
घोला जा सके ।
...."
बहुत सुन्दर रचना...मानो जैसे आपने मेरे मन की सारी बातें लिख दीं। सभी रचनाकार का यही लक्ष्य भी होना चाहिए।
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