फूलों की माला गूँथना
मन के भाव पिरोने जैसा है ।
मन के भाव पिरोने जैसा है ।
बिना बिंधे बिना बंधे
फूल वेणी में
ठहर नहीं सकते ।
फूल वेणी में
ठहर नहीं सकते ।
यदि बिखर गए
तो माला बने कैसे ?
तो माला बने कैसे ?
अनुभव की चुभन बिना
फूलों में पराग कैसा ?
फूलों में पराग कैसा ?
रंग और सुगंध बिना
फूल अर्पित हों कैसे ?
फूल अर्पित हों कैसे ?
फूलों की सरल सरसता ।
भक्ति की पुनीत भावना ।
भक्ति की पुनीत भावना ।
दोनों जब खिलते हैं,
माला में पिरोये जाते हैं ।
माला में पिरोये जाते हैं ।