सोमवार, 2 जुलाई 2018

बनी रहे यह भावना

चाह कर भी
संभव नहीं होता सदा,
दर्द कम करना किसी का ।
दर्द कम करना
तुमने चाहा,
इतना ही बहुत है ।

क्यूंकि,
वक़्त बदलता है ।
वक़्त की फ़ितरत है ।
हमदर्द बदलता है ।
ये भी हक़ीक़त है ।

ये कौन नई बात है ?
सबके अपने हालात हैं ।
पर मन भी हठधर्मी है ।
आस नही छोड़ता ।

कई बार चोट खाता है ।
पर हर बार आस बंधाता है ।
हो ना हो इस बार देखना ।
देवता नहीं दोस्त मिलेगा ।

तुम्हें आशीर्वाद हमारा ।
जब किसी को दुखी देखना,
उसका दुख कम करने का
भरसक प्रयास करना ।
हर बार तुम्हारे बस में
हो ना हो कुछ बदलना,
तुम्हारे मन में हमेशा रहे
जब भी जितनी हो सके
उतनी किसी की व्यथा
कम करने की भावना ।


10 टिप्‍पणियां:

  1. यही भावना ही तो दवा का काम करती है.....

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-07-2018) को "कामी और कुसन्त" (चर्चा अंक-3021) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. राधाजी बहुत आभारी हूँ चर्चा में शामिल करने के लिए .

    दिलीपजी अच्छी बात कही आपने . दुआ दवा का असर करती है . यूँ ही नहीं .

    चिराग जी शुक्रिया . पढने वालों की उदारता से हर लाइन ख़ास होती है .

    अनाम पाठक का उत्साह और अच्छा लिखने को प्रेरित करता है . धन्यवाद .

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 जुलाई 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  5. ये कौन नई बात है ?
    सबके अपने हालात हैं ।
    पर मन भी हठधर्मी है ।
    आस नही छोड़ता ।

    कई बार चोट खाता है ।
    पर हर बार आस बंधाता है ।
    हो ना हो इस बार देखना ।
    देवता नहीं दोस्त मिलेगा ।
    कितनी सही बात !!!! थके निराश मन को देवता की नहीं, दोस्त की जरूरत होती है।

    जवाब देंहटाएं
  6. यशोदाजी, आपका हार्दिक आभार.अधिक पाठकों तक पहुँचाने के लिए.
    अनुराधा जी, मीना जी, शुभा जी समस्त सखी वृन्द की सराहना सर-आँखों पर.
    नमस्ते.

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