सोमवार, 2 जुलाई 2018

बनी रहे यह भावना

चाह कर भी
संभव नहीं होता सदा,
दर्द कम करना किसी का ।
दर्द कम करना
तुमने चाहा,
इतना ही बहुत है ।

क्यूंकि,
वक़्त बदलता है ।
वक़्त की फ़ितरत है ।
हमदर्द बदलता है ।
ये भी हक़ीक़त है ।

ये कौन नई बात है ?
सबके अपने हालात हैं ।
पर मन भी हठधर्मी है ।
आस नही छोड़ता ।

कई बार चोट खाता है ।
पर हर बार आस बंधाता है ।
हो ना हो इस बार देखना ।
देवता नहीं दोस्त मिलेगा ।

तुम्हें आशीर्वाद हमारा ।
जब किसी को दुखी देखना,
उसका दुख कम करने का
भरसक प्रयास करना ।
हर बार तुम्हारे बस में
हो ना हो कुछ बदलना,
तुम्हारे मन में हमेशा रहे
जब भी जितनी हो सके
उतनी किसी की व्यथा
कम करने की भावना ।


शुक्रवार, 29 जून 2018

महफ़ूज़



घर के खिड़की - दरवाज़े 
इन दिनों 
बंद करते वक़्त 
बहुत आवाज़ करते हैं ।  
जैसे घर में 
रहने वालों के 
अहम टकराते हों 
बात बात पर । 

कल की तूफ़ानी बरसात में
घर के बाहर 
पहरेदारी करता 
बड़ा छायादार पेड़ भी 
धराशायी हो गया ।

घर के भीतर और बाहर 
अब पड़ने लगी हैं दरारें ।
मैं असमंजस में हूँ ।

मुश्किल वक़्त में 
मैं कहाँ पनाह लूँ  ?
भीतर या बाहर  . . 
मैं कहाँ महफ़ूज़ हूँ ?     



शुक्रवार, 15 जून 2018

जय हिंद

ये इत्तफ़ाक नहीं है ।

सीमा पर तैनात जवान
रोज़ शहीद हो रहा है ।
तब जाकर इस देश का
हर आदमी
चैन से सो पा रहा है ।
वो अपना फ़र्ज़
निभा रहा है,
बिना सवाल पूछे
उन हमवतनों से,
जो उसकी कुर्बानी पर
सवालिया निशान
बार-बार लगा रहे हैं ।

ये इत्तफ़ाक़ नहीं है ।

चाँद यूं ही
मुबारक़ नहीं होता ।
जब एक जवान
ईद की छुट्टी में
घर जाते हुए,
इस दुनिया से
रवाना हो जाता है,
पर सर नहीं झुकाता है ।
तब जाकर
ईद का चांद नज़र आता है ।

हर उस जवान की बदौलत
जो वतन की ख़ातिर
जान दांव पर लगाता है,
हमारा तिरंगा
फ़ख्र से लहराता है ।