शुक्रवार, 29 जून 2018

महफ़ूज़



घर के खिड़की - दरवाज़े 
इन दिनों 
बंद करते वक़्त 
बहुत आवाज़ करते हैं ।  
जैसे घर में 
रहने वालों के 
अहम टकराते हों 
बात बात पर । 

कल की तूफ़ानी बरसात में
घर के बाहर 
पहरेदारी करता 
बड़ा छायादार पेड़ भी 
धराशायी हो गया ।

घर के भीतर और बाहर 
अब पड़ने लगी हैं दरारें ।
मैं असमंजस में हूँ ।

मुश्किल वक़्त में 
मैं कहाँ पनाह लूँ  ?
भीतर या बाहर  . . 
मैं कहाँ महफ़ूज़ हूँ ?     



शुक्रवार, 15 जून 2018

जय हिंद

ये इत्तफ़ाक नहीं है ।

सीमा पर तैनात जवान
रोज़ शहीद हो रहा है ।
तब जाकर इस देश का
हर आदमी
चैन से सो पा रहा है ।
वो अपना फ़र्ज़
निभा रहा है,
बिना सवाल पूछे
उन हमवतनों से,
जो उसकी कुर्बानी पर
सवालिया निशान
बार-बार लगा रहे हैं ।

ये इत्तफ़ाक़ नहीं है ।

चाँद यूं ही
मुबारक़ नहीं होता ।
जब एक जवान
ईद की छुट्टी में
घर जाते हुए,
इस दुनिया से
रवाना हो जाता है,
पर सर नहीं झुकाता है ।
तब जाकर
ईद का चांद नज़र आता है ।

हर उस जवान की बदौलत
जो वतन की ख़ातिर
जान दांव पर लगाता है,
हमारा तिरंगा
फ़ख्र से लहराता है ।

सोमवार, 11 जून 2018

निष्ठा


अंजुरी भर जल में
आकाश की परछाईं है ।
मिट्टी के छोटे से दीपक ने
सूरज से आंख मिलाई है ।
घर के टूटे-पुराने गमले में
हरी-हरी जो कोपल फूटी है ।
उसने अनायास ही मेरे मन में
जीवन के प्रति निष्ठा रोपी है ।
हो सकता है ये बात अटपटी लगे
पर धूप ने भी अपनी मुहर लगाई है ।