ये इत्तफ़ाक नहीं है ।
सीमा पर तैनात जवान
रोज़ शहीद हो रहा है ।
तब जाकर इस देश का
हर आदमी
चैन से सो पा रहा है ।
वो अपना फ़र्ज़
निभा रहा है,
बिना सवाल पूछे
उन हमवतनों से,
जो उसकी कुर्बानी पर
सवालिया निशान
बार-बार लगा रहे हैं ।
ये इत्तफ़ाक़ नहीं है ।
चाँद यूं ही
मुबारक़ नहीं होता ।
जब एक जवान
ईद की छुट्टी में
घर जाते हुए,
इस दुनिया से
रवाना हो जाता है,
पर सर नहीं झुकाता है ।
तब जाकर
ईद का चांद नज़र आता है ।
हर उस जवान की बदौलत
जो वतन की ख़ातिर
जान दांव पर लगाता है,
हमारा तिरंगा
फ़ख्र से लहराता है ।