सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

दुःख के लिए जगह मत छोड़ो




सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

मिट्टी में बीज बो कर देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
जब मिटटी में अंकुर फूटेगा,
और सींचोगे तो फूल खिलेगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

दोस्त किसी के बन कर देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
उसका दुःख सुलझाओगे जितना,
अपने सुख का पता मिलेगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

टूटी चीज़ों को जोड़ के देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
जब - जब जोड़ोगे टूटा खिलौना,
बच्चों का निश्छल प्यार मिलेगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

भार उठा अपनों का देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
हर दिन माँ - बाप के पैर दबाना,
भारीपन मन का उड़न - छू होगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

बेरंग सतहों को रंग कर देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
सूनी दीवारें,कैनवस,कॉपी,हथेली हो, 
तीन कनस्तर या लकड़ी का टुकड़ा। 
कुछ मत छोड़ो ! सब कुछ रंग दो !
जीवन का रंग क्या खूब चढ़ेगा !

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  




शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

कोई सुन रहा है





कई बार 
ऐसा होता है  . . 
जब धूप ढ़ल रही होती है,   
अंतर्मन में कहीं 
सूर्य अस्त होने लगता है ।

बहुत कुछ कहना होता है,
पर शब्द पर्याप्त नहीं होते ।
बहुत कुछ कहना होता है ,
पर कोई सुनने वाला नहीं होता ।

उस वक़्त, 
अगर ध्यान से देखो 
और महसूस करो, 
सर पर तुम्हारे नीला आसमान 
अपना प्यार भरा 
हाथ रख देता है । 

पेड़ हाथ हिला-हिला कर 
अपनी छाँव में बैठने को बुलाते हैं ।
गौरैया का लगा रहता है 
आना-जाना  . . 
क्यों तुम पाते हो अपने को अकेला ?

नन्हे पौधों पर 
हौले-हौले हिलती 
हरी कोमल पत्तियां, 
गुनगुनी धूप में खिले 
किसिम - किसिम के फूल 
मुस्कुराते हैं 
और देते हैं 
मौन आश्वासन  . . 
कोई जान रहा है 
तुम्हारे मन की बात  . . 
कोई सुन रहा है ।   


रविवार, 5 फ़रवरी 2017

वर दे माँ !


माँ सरस्वती वर दे !
मन के मौन स्वर
मुखर कर दे !
वर दे !

वरद हस्त
शीश पर रख दे !
मस्तक पर
जिजीविषा का तिलक कर दे !
आत्मबल का चन्दन लेप दे !
स्वाभिमान लिख दे !
वर दे !

भवितव्य का सामना करने का
साहस दे माँ !
भाग्य को बदलने का
मनोबल दे माँ !
संघर्ष में सुख खोजने की
दृष्टि दे माँ !
विषम परिस्थितियों को
अनुकूल बनाने की
शक्ति दे माँ !
बालपन की
सहज बुद्धि दे माँ !

और यदि कुछ भी ना देना चाहे !
तो जो है उसे स्वीकारने
और सँवारने का
संकल्प दे माँ !

प्रस्तर से प्रतिमा गढ़ने की प्रतिभा ..
हर हार को
फूलों के हार का उपहार
समझने की
सरलता दे माँ !

वर दे माँ !
आशीष दे माँ !
जीवन के मौन स्वर
मुखर कर दे माँ !
अंतर की ज्योत
प्रखर कर दे माँ !
आशीष दे माँ !
माँ सरस्वती वर दे माँ !