शनिवार, 9 मई 2015

हम दोस्त हैं


जाने कब से,
हम मिले नहीं ।
एक - दूसरे के बारे में,
हम कुछ जानते नहीं ।
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।

आप भी हमारे हालात पहचानिये, 
हमारी मसरूफ़ियत को जानिये, 
देखिये, इस बात को समझिये  . . 
हम दोस्तों की सारी ख़बर रखते हैं ।

फ़ेसबुक की टाइमलाइन पर 
                    नज़र रखते हैं !
आप ख़ुद देख लीजिये !
दोस्तों की हर पोस्ट को 
              लाइक करते हैं !
हर फोटो को शेयर करते हैं,
ट्विटर पर फ़ॉलो  करते हैं !
इंस्टाग्राम पर दीदार करते हैं  . . 

पर अब, ये सब फ़िज़ूल की बातें हैं,
जो आप कहते हैं  . . 
क्या हम अपने दोस्त की 
लिखावट पहचानते हैं ?
क्या हम अपने दोस्त की 
दुखती रग चीन्हते हैं ?
इन सवालों का जवाब  . . 
                 "नहीं" है ।
इन जज़्बाती बातों के लिए वक़्त 
                            नहीं है ।
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।

दोस्तों की लम्बी 
फ़ेहरिस्त है ।
आप चाहें तो हम 
गिनवा सकते हैं ।
मजाल है जो कभी 
उनकी बर्थडे पर 
मैसेज ना किया हो !
एनिवर्सरी पर 
विश न किया हो !
हाँ इतना तो वक़्त नहीं,
जो घर आना - जाना हो ।
कभी साथ में सैर पर निकला जाये ।
जब बिना पूछे ही 
मन की बातें 
ज़बान पर आ जायें ।
या कभी यूँ ही बरामदे में 
चुपचाप बैठा जाये,
समय की चहलकदमी को 
कौतुक से देखा जाये ।
कभी झकझोर के 
अपने अज़ीज़ को 
पूछा जाये,
यार बता !
आख़िर बात क्या है ?

हाँ ठीक है ।
वो बात ही कुछ और होती 
अगर कभी कभी 
हम गले मिलते ।
हाथ मिलाते 
तो जान पाते  . . 
दोस्त की हथेली 
ठंडी क्यों है,
पकड़ ढ़ीली क्यों है  . . 
या तसल्ली होती -
गर्मजोशी से हाथ मिला के 
दिल के बंद पोर खुल जाते !

पर ऐसा है नहीं ।
अंदरुनी दूरियाँ 
अब कोई 
नापता नहीं  . . 

ऐसा है नहीं  . . 

फिर भी,
हम दोस्त हैं ।

                                            


सोमवार, 4 मई 2015

बहुत दिनों बाद



बचपन बहुत पीछे छूट गया ।

बहुत बरस पहले कहीं ठिठका,
बस वहीँ अटक कर रह गया ।
जैसे खाते - खाते लगे ठसका  . . 
ऐसे कभी - कभी याद है आता,
और आँखें नम कर जाता ।

उस दिन कुछ ऐसा ही हुआ ।

बहुत दिनों में ननिहाल जाना हुआ ।
प्रणाम करते ही नानाजी ने कहा  . . 
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा ।

बहुत अरसे बाद उनका ये कहना,
बालों में आती सफ़ेदी को अनदेखा कर गया ।
बचपन के किस्सों वाला पन्ना पलट गया  . . 
जिसमें था बचपन की कारस्तानियों का लेखा - जोखा  . . 
और नानाजी का बात - बात पर रोकना - टोकना ।

अब ना कोई जाने से रोकता ।
ना ही गलतियों पर टोकता ।

इसलिए जब नानाजी ने कहा  . . 
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा  . . 

. .  तो रोना भी आया ।
और बहुत अच्छा भी लगा ।

                     

शनिवार, 21 मार्च 2015

नव संवत्सर शुभ हो !







आने वाला हर पल नया है ।
संभावनाओं से भरा है । 











समय का पन्ना नया है ।
लिखो जो चाहे लिखना है  . . . . . . 







हरेक पल अनुभव नया है ।
हर अनुभव से कुछ सीखना है ।












ये मौसम का तेवर नया है ।
या तुमने नया छंद रचा है ।