सोमवार, 4 मई 2015

बहुत दिनों बाद



बचपन बहुत पीछे छूट गया ।

बहुत बरस पहले कहीं ठिठका,
बस वहीँ अटक कर रह गया ।
जैसे खाते - खाते लगे ठसका  . . 
ऐसे कभी - कभी याद है आता,
और आँखें नम कर जाता ।

उस दिन कुछ ऐसा ही हुआ ।

बहुत दिनों में ननिहाल जाना हुआ ।
प्रणाम करते ही नानाजी ने कहा  . . 
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा ।

बहुत अरसे बाद उनका ये कहना,
बालों में आती सफ़ेदी को अनदेखा कर गया ।
बचपन के किस्सों वाला पन्ना पलट गया  . . 
जिसमें था बचपन की कारस्तानियों का लेखा - जोखा  . . 
और नानाजी का बात - बात पर रोकना - टोकना ।

अब ना कोई जाने से रोकता ।
ना ही गलतियों पर टोकता ।

इसलिए जब नानाजी ने कहा  . . 
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा  . . 

. .  तो रोना भी आया ।
और बहुत अच्छा भी लगा ।

                     

शनिवार, 21 मार्च 2015

नव संवत्सर शुभ हो !







आने वाला हर पल नया है ।
संभावनाओं से भरा है । 











समय का पन्ना नया है ।
लिखो जो चाहे लिखना है  . . . . . . 







हरेक पल अनुभव नया है ।
हर अनुभव से कुछ सीखना है ।












ये मौसम का तेवर नया है ।
या तुमने नया छंद रचा है ।      








शनिवार, 14 मार्च 2015

बात



कोई तो बात होगी 
जो तुमसे हर बात 
कहने का 
जी करता है ।

और जो बात 
कहे बिना 
कह दी जाती है ,
उसे ज़माना 
प्यार कहता है ।