शनिवार, 30 अगस्त 2014

गणपति बप्पा मोरया

हर मुम्बईकर के पिता,
गणपति बप्पा मोरया ।
इनका उत्सव आया,
चतुर्दिक हर्ष छाया !

शिल्पकार की मुखर हो उठी कल्पना,
बप्पा को अनेक रूपों में देखा ।

किसी ने उन्हें मुनीमजी बनाया,
किसी ने स्कूल का यूनिफार्म पहनाया ।
किसी ने हाथों में वाद्य थमाया,
किसी ने पग में नूपुर बाँधा ।

कभी हाथ में पुस्तक,
कभी नृत्य को उत्सुक,
बप्पा ने सबका मन बहलाया,
सिर पर रखा हाथ मस्तक सहलाया ।

बप्पा के चरणों पर शीश नवाऊँ,
बप्पा की गोद में सिर रख सो जाऊं ..
                       तो चैन पाऊं,
                       बप्पा के गुण गाऊं ।

भाव विभोर हो मन कह उठा,
बप्पा हमको आशीष देना ।


रविवार, 24 अगस्त 2014

अनुभव



आज दफ़्तर को जाते हुए,
एक अजब किस्सा हुआ ।

मोटरों की चिल्ल-पों, 
भीड़ भरे रास्तों 
के ठीक बीचों-बीच,
बस स्टॉप के रास्ते पर 
चलते-चलते अचानक देखा  . . 
एक गिलहरी, 
अनायास ही ,
मेरा रास्ता 
पार कर गयी ।
  
कंक्रीट का जंगल 
देखता रह गया ।

कुछ पल के लिए 
वहाँ कोई ना था ,
ना रास्ता ,
ना बाकी दुनिया से वास्ता ।

एक कोमल पल ठहर गया ।
एक सुखद अनुभव हुआ ।
और बाँटने का मन हुआ ।      




शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

स्वतन्त्रता



सच्ची स्वतन्त्रता यही है ।

बच्चों की सेना 
जगह - जगह
चौराहों पर, 
प्लास्टिक के तिरंगे 
बेच रही है । 

इन्ही की 
खुरदुरी 
हथेलियों पर,
देश की 
सम्पन्नता 
टिकी है । 

इन्ही के 
दुबले 
कन्धों पर,
देश की 
प्रतिष्ठा 
टिकी है ।    

इनकी 
जिजीविषा 
महाबली है । 
सच्ची 
स्वतंत्रता 
यही है ।