रविवार, 6 अप्रैल 2014

आधार



घर में जब बच्चों की नयी 
स्टडी टेबल आई,
तो मन में एक विचार आया 
इस मेज़ को कैसे जाए सजाया ।

एक बेटा है मेरा और एक बेटी, 
दोनों इतने खुश थे  . . पूछो नहीं !

दुकानों के जब दर्जन भर दौरे कर आयी,
तब जा के दोनों के लिए दो मूर्तियां लायी ।
एक थी माँ दुर्गा, एक माँ सरस्वती,
एक - एक मूर्ति दोनों को थमाई ।

बोले बच्चों के पापा  . . 
एक बात समझ नहीं पाया,
तुम बेटे के लिए माँ सरस्वती 
बेटी के लिए माँ दुर्गा क्यों लाई ?

मन में जो बात थी वह कह सुनाई, 
बच्चों के पिता को हौले से समझाई ।

बेटे पर माँ सरस्वती का आशीर्वाद बना रहे,
माँ , बहन, पत्नी , हर स्त्री का आदर करे ,
हर हाल में उसकी सदबुद्धि बनी रहे ।

बेटी को माँ दुर्गा का आशीष मिले,
हर संघर्ष में उसका मस्तक ऊंचा रहे,
किसी भी परिस्थिति में हिम्मत न टूटे ।

जीवन में जब परीक्षा का क्षण आये, 
मेरे बच्चे आत्म-गौरव और गरिमा की 
धारदार कसौटी पर हमेशा खरे उतरें ।
                   

शनिवार, 15 मार्च 2014

शायद अब कल मैं कुछ लिखूँ



आपकी सराहना ने 
अनुभूति के रिक्त कोने 
                        भर दिए ।
शायद अब 
           कल मैं कुछ लिखूँ ।

अपनी कलम के साथ चार कदम चलूँ ।
शब्दों में अपने साफ़ - साफ़ दिखूँ ।
            शायद अब 
                       कल मैं कुछ लिखूँ ।   

ऊन की सलाई पर नए फंदे बुनूँ ।
बगीचे की क्यारी में नन्हा पौधा रोपूं ।
             शायद अब 
                        कल मैं कुछ लिखूँ ।   

खट्टी-मीठी गोलियों का चटपटा स्वाद चखूँ ।
बच्चों संग बच्चा बन नित नए खेल खेलूँ । 
              शायद अब 
                         कल मैं कुछ लिखूँ ।

नदी किनारे बैठ कर बाँसुरी बजाऊँ ।
खाट पर लेटे-लेटे तारों से मंत्रणा करूं ।
              शायद अब 
                         कल मैं कुछ लिखूँ ।     

शायद अब कल मैं कुछ लिखूँ ।




शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

लिखने से पहले




जब-जब कलम लिख नहीं पाती ,
ख़ुद से बात नहीं हो पाती ।

मन पर एक बोझ-सा बना रहता है ,
मन घुटता रहता है ;
जैसे आकाश में चारों तरफ़ 
घुमड़ रहे हों बादल . 
वर्षा की प्रतीक्षा 
जैसे करती है धरा ,
चुप्पी साधे ,
मन भी बाट तकता है 
अनुभूतियों के आगमन की ,
भावनाओं की अभिव्यक्ति की .    
आह ! डबडबाते हैं बादल 
पर वर्षा नहीं होती ,
तरसती रहती है धरती . 

धैर्य की चरम सीमा 
छूकर जब मन है पिघलता ,
होती है वर्षा . 
झूम-झूम कर स्वागत करती है 
समस्त वसुधा,
शब्द-शब्द का . . 
छम-छम नाचती है 
बूंदों की श्रृंखला .

मिट्टी में दबा बीज जाग उठता है . 
कवि हृदय में कविता का अंकुर फूटता है .