शनिवार, 28 सितंबर 2013

जीवन उत्सव है



जीवन उत्सव है । 
पंछियों का कलरव है ।
जुगनुओं की जगमग है ।
नूपुरों की छन - छन है ।
चूड़ियों की खन - खन है ।   
पायल की छम - छम है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
ढोलक की थाप है ।
अनचीन्हा राग है ।
मेंहदी की छाप है ।
हवन का ताप है ।
विदूषक का स्वांग है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पग की थिरकन है ।
ह्रदय की धड़कन है ।
गीत की सरगम है ।
स्वप्नों की करवट है ।
समय की सिलवट है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पूजा की शुभ वेला है ।
त्यौहारों का मेला  है ।  
पुरुषार्थ अलबेला है ।
आस्था की अनुपम लीला है ।
जिजीविषा की पाठशाला है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पंचतंत्र की कथा है ।
भावुक मन की व्यथा है ।
अनुभूति की यात्रा है ।
अंतर्मन की कविता है ।
कर्म और कर्त्तव्य की गीता है ।
जीवन उत्सव है ।


                               

बुधवार, 25 सितंबर 2013

नमस्कार


लो आ गई 
ओस की बूंदों सी,
पवित्र और पारदर्शी
एक नयी सुबह 
ताज़ी नमकीन !

जैसे खुशखबरी का तार । 
जैसे अच्छी ख़बरों से भरा अखबार ।   
जैसे बारिश की ठंडी फुहार । 
जैसे नदी किनारे भीनी - भीनी बयार । 
जैसे पुराना आम का अचार । 
जैसे सहेलियों में मीठी - सी तकरार । 
जैसे रेडियो पर आज के मुख्य समाचार । 
जैसे बूढ़ी दादी का लाड़ - दुलार । 
जैसे बच्चों की गुड़ियों का संसार । 
जैसे गाय के बछड़े की पुकार । 
जैसे खिले - खिले फूलों की बहार । 
जैसे द्वारे पर स्वागत का नेग - चार । 

जैसे जीवन का सत्कार । 
ऐसी सुबह को, 
जागने वाले का 
नमस्कार !



शनिवार, 14 सितंबर 2013

समाधान





फ़ैसला आ गया । 

आख़िर , फ़ैसला आ गया ।   
फ़ैसला सुन कर 
हमारी प्रतिक्रिया 
क्या होनी चाहिए ?

एक सही फ़ैसले पर 
खुश होना चाहिए ?
निश्चिन्त होना चाहिए ?
कि अब ऐसे अपराध 
कम होंगे  . . 
अपराध करने वाले डरेंगे  ? 

और फिर जीवन 'चलता' होगा, 
अपने रस्ते ।  
सब कुछ चलता रहेगा ,
जैसे चलता है ।   
जैसे लट्टू घूमता है 
अपनी धुरी पर ।  

तब तक ,
जब तक 
अगले बलात्कार की ख़बर  
नहीं आ जाती । 
और अफ़सोस कि वो 'अगली बार ' 
आने में 
ज़्यादा देर नहीं लगती ।   

अगला समाचार  . . .  
वही दुराचार । 

फिर वही सवाल ।  
फिर वही बवाल ।   

समाधान क्या है ?

शुरुआत क्या 
अपने घर से 
की जा सकती है ?
क्या अपने  बेटे को 
माँ ये समझा सकती है 
कि स्त्री की देह कोई 
चीज़ नहीं 
जिससे जैसे चाहे 
खेला जाये ।   
स्त्री की देह 
वो नेमत है, 
जिसके रहते 
तुम्हारा जन्म हुआ है ।   
इस स्त्री देह को 
जब भी छुओ, 
सम्मान से छूना ।   

कभी मत भूलना !
इस स्त्री को जो 
चोट पहुँचाओगे,
अपने - आप को कभी 
माफ़ नहीं कर पाओगे ।