कोयलिया ने
मधुर गीत सुना कर
प्रस्ताव रखा -
चलो, जीवन को
सरस बनाते हैं .
नव पल्लव झूम उठे
सुन कर,
सहर्ष, करतल ध्वनि की।
रंगों की पिचकारी छूटी .
वसंत के रंगों में खिले,
हर फूल ने
सिर हिला कर,
और खिल कर
प्रस्ताव का अनुमोदन किया .
जीवन का पन्ना-पन्ना,
मन के कैनवस का कोना-कोना
रंग दिया .
और सबने
खट्टे-मीठे
आम सरीखे
जीवन के हर अनुभव का
स्वाद लिया .
समस्त सृष्टि ने
समवेत स्वर में
कहा -
जीवन चखने को मिला
इतना ही बहुत नहीं क्या ?
उस पर इतने रंगों की छटा
मन बावरा नहीं होगा क्या ?
स्वाद और रंगों से सराबोर
ये मौसम कभी बीते ना !
मौसम बीते , ऋतु बदले ,
रंग जो चढ़े , कभी छूटे ना !